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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates चौथा अधिकार] [७९ तथा सर्वथा सर्व कर्मबंधका अभाव होना उसका नाम मोक्ष है। यदि उसे नहीं पहिचाने तो उसका उपाय नहीं करे, तब संसार में कर्मबंध से उत्पन्न दुःखोंको ही सहे; इसलिये मोक्ष को जानना। इसप्रकार जीवादि सात तत्व जानना। तथा शास्त्रादि द्वारा कदाचित् उन्हें जाने, परन्तु ऐसे ही हैं ऐसी प्रतीति न आयी तो जानने से क्या हो ? इसलिये उनका श्रद्धान करना कार्यकारी है। ऐसे जीवादि तत्त्वों का सत्य श्रद्धान करने पर ही दुःख होने का अभावरूप प्रयोजन की सिद्धि होती है। इसलिये जीवादिक पदार्थ हैं वे ही प्रयोजनभूत जानना। तथा इनके विशेष भेद पुण्य-पापादिरूप हैं उनका भी श्रद्धान प्रयोजनभूत है, क्योंकि सामान्य से विशेष बलवान है। इस प्रकार ये पदार्थ तो प्रयोजनभूत हैं, इसलिये इनका यथार्थ श्रद्धान करने पर तो दुःख नहीं होता, सुख होता है; और इनका यथार्थ श्रद्धान किये बिना दुःख होता है, सुख नहीं होता। तथा इनके अतिरिक्त अन्य पदार्थ हैं वे अप्रयोजनभूत हैं, क्योंकि उनका यथार्थ श्रद्धान करो या मत करो उनका श्रद्धान कुछ सुख-दुःखका कारण नहीं है। यहाँ प्रश्न उठता है कि - पहले जीव-अजीव पदार्थ कहे उनमें तो सभी पदार्थ आ गये; उनके सिवा अन्य पदार्थ कौन रहे जिन्हें अप्रयोजनभूत कहा है। समाधान :- पदार्थ तो सब जीव-अजीव में गर्भित हैं, परन्तु उन जीव-अजीवों के विशेष बहुत हैं। उनमें से जिन विशेषों सहित जीव-अजीव का यथार्थ श्रद्धान करने से स्वपर का श्रद्धान हो, रागादिक दूर करने का श्रद्धान हो, उन से सुख उत्पन्न हो; तथा अयथार्थ श्रद्धान करने से स्व-पर का श्रद्धान नहीं हो, रागादिक दूर करने का श्रद्धान नहीं हो, इसलिये दुःख उत्पन्न हो; उन विशेषों सहित जीव-अजीव पदार्थ तो प्रयोजनभूत जानना। तथा जिन विशेषों सहित जीव-अजीव का यथार्थ श्रद्धान करने या न करने से स्वपर का श्रद्धान हो या न हो, तथा रागादिक दूर करने का श्रद्धान हो या न हो – कोई नियम नहीं है; उन विशेषों सहित जीव-अजीव पदार्थ अप्रयोजनभूत जानना। जैसे - जीव और शरीर का चैतन्य, मूर्त्तत्वादि विशेषों से श्रद्धान करना तो प्रयोजनभूत है; और मनुष्यादि पर्यायों का तथा घट-पटादिका अवस्था, आकारादि विशेष से श्रद्धान करना अप्रयोजनभूत है। इसी प्रकार अन्य जानना। __ इस प्रकार कहे गये जो प्रयोजनभूत जीवादिक तत्त्व उनके अयथार्थ श्रद्धान का नाम मिथ्यादर्शन जानना। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008265
Book TitleMoksh marg prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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