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________________ Version 002: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates तीसरा अधिकार ] तो सच्चा उपाय क्या है ? सम्यग्दर्शनादिकसे भ्रम दूर हो तब सामग्रीसे सुख-दुःख भासित नहीं होता, अपने परिणामहीसे भासित होता है। तथा यथार्थ विचारके अभ्यास द्वारा अपने परिणाम जैसे सामग्रीके निमित्तसे सुखी-दुःखी न हों वैसे साधन करे तथा सम्यग्दर्शनादिकी भावनासेही मोह मंद हो जाये तब ऐसी दशा हो जाये कि अनेक कारण मिलने पर भी अपनेको सुख-दुःख नहीं होता; तब एक शांतदशारूप निराकुल होकर सच्चे सुखका अनुभव करता है, और तब सर्व दुःख मिटकर सुखी होता है - यह सच्चा उपाय है। आयुकर्मके उदयसे होनेवाला दुःख और उससे निवृत्ति तथा आयुकर्मके निमित्तसे पर्यायका धारण करना सो जीवितव्य है और पर्यायका छूटना सो मरण है। यह जीव मिथ्यादर्शनादिकसे पर्यायहीको अपनेरूप अनुभव करता है; इसलिए जीवितव्य रहने पर अपना अस्तित्व मानता है और मरण होने पर अपना अभाव होना मानता है। इसी कारणसे इसे सदाकाल मरणका भय रहता है, उस भयसे सदा आकुलता रहती है। जिनको मरणका कारण जाने उनसे बहुत डरता है, कदाचित् उनका संयोग बने तो महाविह्वल होजाता है। - इस प्रकार महा दुःखी रहता है। उसका उपाय यह करता है कि मरणके कारणोंको दूर रखता है अथवा स्वयं उनसे भागता है। तथा औषधादिक साधन करता है; किला, कोट आदि बनाता है - इत्यादि उपाय करता है सो ये उपाय झूठे हैं; क्योंकि आयु पूर्ण होने पर तो अनेक उपाय करे, अनेक सहायक हों तथापि मरण हो ही जाता है, एक समयमात्र भी जीवित नहीं रहता। और जब तक आयु पूर्ण न हो तब तक अनेक कारण मिलो, सर्वथा मरण नहीं होता। इसलिये उपाय करनेसे मरण मिटता नहीं है; तथा आयुकी स्थिति पूर्ण होती ही है, इसलिए मरण भी होता ही है। इसका उपाय करना झूठा ही है। तो सच्चा उपाय क्या है ? सम्यग्दर्शनादिकसे पर्यायमें अहंबुद्धि छूट जाये, स्वयं अनादिनिधन चैतन्यद्रव्य है उसमें अहंबुद्धि आये, पर्यायको स्वांग समान जाने; तब मरणका भय नहीं रहता। तथा सम्यग्दर्शनादिकसे ही सिद्धपद प्राप्त करे तब मरणका अभाव ही होता है। इसलिये सम्यग्दर्शनादिक ही सच्चे उपाय हैं। नामकर्मके उदयसे होनेवाला दु:ख और उससे निवृत्ति तथा नामकर्मके उदयसे गति, जाति, शरीरादिक उत्पन्न होते हैं। उनमेंसे जो पुण्यके उदयसे होते हैं वे तो सुखके कारण होते हैं और जो पापके उदयसे होते हैं वे दुःखके कारण होते हैं; सो यहाँ सुख मानना भ्रम है। तथा यह दुःखके कारण मिटानेका और सुखके कारण होनेका उपाय करता है वह झूठा है; सच्चा उपाय सम्यग्दर्शनादिक Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008265
Book TitleMoksh marg prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTodarmal Pandit
PublisherKundkund Kahan Digambar Jain Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size2 MB
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