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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है विलम्ब हो जायेगा। और दिल्ली मुमुक्षु मण्डल को पुस्तक शीघ्रातिशीघ्र छपानी थी। इसलिये इस अनुवाद का कार्य पू. भाई श्री की छत्रछाया में हो; ऐसा विचार कर यह महान सौभाग्य पू. भाई श्री ने हमें प्रदान किया। पू. भाई श्री की आज्ञा को शिरोमान्य कर अनुवाद का कार्य प्रारम्भ हुआ एवं अल्प समय में ही उनके आन्तरिक आशीषों से निर्विघ्नपने सम्पन्न भी हो गया। अनुवाद का कार्य भी होता गया और साथ ही साथ पू. भाई श्री भी उसको देखते गये। पू. भाई श्री ने अपना अमूल्य समय इसमें दिया उसके लिये हम उनके हृदय से आभारी हैं। वास्तव में तो यह संकलन पू. भाई श्री की ही अपारकृपा का फल है - हमारा तो इसमें कुछ भी नहीं है। सब उन्हीं का दिया हुआ है। हमको इस संकलन के लिए ऐसा विचार आया था कि आचार्यों, मूलशास्त्रों के जो वचनामृत हैं वो प्रथम खण्ड में संकलित हों और गुरुदेव श्री आदि के वचनामृत द्वितीय खण्ड में संकलित हो। लेकिन गुजराती प्रथम आवृत्ति का छपाई का कार्य आरम्भ होने के बाद भी हमें नये-नये आधार मिलते ही गये इसलिए उसमें थोड़ा पीछे से प्रथम खण्ड के वचनामृत ( तत्त्वानुशासनादि) द्वितीय खण्ड में छप गये हैं - वैसे उसमें मूलप्रयोजन तो – स्वाध्याय का ही है! गुजराती द्वितीय आवृत्ति में भी यह सुधार चाहने पर भी नहीं हो सका, क्योंकि प्रथमावृत्ति का प्रेस मैटर एकदम तैयार था और वह पुस्तक जामनगर पंचकल्याण पर प्रकाशित होनी थी, इसलिए समयाभाव के कारण यह सुधारा नहीं हो सका है। लेकिन, इस हिन्दी प्रथम आवत्ति में तो इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखकर ही वचनामृतों का व्यवस्थित संकलन हुआ है, सम्पादन हुआ है। Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008245
Book TitleIndriya Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSandhyaben, Nilamben
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size3 MB
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