SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है निवेदन " इन्द्रियज्ञान वास्तव में ज्ञान नहीं है” – इस सम्बन्धी पू. भाई श्री के श्रीमुख से बारम्बार बात आती थी और साथ ही साथ ऐसा भी कहते थे कि इस इन्द्रियज्ञान सम्बन्धी उल्लेख शास्त्रों में कहीं-कहीं अलगअलग बिखरे हुये हैं – सो यदि कोई उनका संकलन करे तो स्वपर का हित होवे-ऐसी वस्तु हैं! इन्द्रियज्ञान-वास्तव में ज्ञान नहीं है परन्तु परज्ञेय है; फिर भी इसमें ज्ञान की भ्रांति हुई है – इसलिए ऐसी कोई पुस्तक बाहर प्रकाशन में आवे – कोई संकलन करे कि जिससे भ्रांति दूर होवे - और सम्यक्ज्ञान प्रकट होवे - ऐसी भावना बारम्बार व्यक्त करते थे। पू. भाई श्री की इस स्वपरहितकारी, मांगलिक, पवित्र, उत्कृष्ट भावना को देखकर हमें विचार आया कि इस संकलन का कार्य का सौभाग्य हम ही ले लें। और संकलन का कार्य पू. भाई श्री की अतिशय कृपा से सम्पन्न भी हो गया और यह संकलन प्रथम गुजराती में प्रकाशित हुआ। इस गुजराती प्रथम प्रकाशन को देखकर हिन्दी मुमुक्षु समाज की भावना हुई कि यह प्रकाशन हिन्दी में भी होना चाहिए। यद्यपि जब गुजराती प्रकाशन बाहर आने वाला था तभी से यह नक्की था कि इसको हिन्दी में भी छपाना है। लेकिन इसके लिए हिन्दी अनुवाद होना चाहिये। और हिन्दी अनुवाद किसी को सौंपा जाये। फिर भाई श्री को विचार आया कि यदि अनुवाद का कार्य बाहरगाम का कोई करे तो उसमें यह तकलीफ होगी कि सामग्री वहाँ से बारम्बार मंगाना – उसको देखना – ऐसा करने से तो कार्य में बहुत Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008245
Book TitleIndriya Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSandhyaben, Nilamben
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy