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________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates इन्द्रियज्ञान... ज्ञान नहीं है इसलिए इसमें नं. १ से लेकर नं. २७२ तक के वचनामृत ज्यों के त्यों गुजराती नं. से मिलते हैं। लेकिन उसके बाद अन्य आधारों के बढ़ जाने से सामग्री बढ़ गई है, इसलिए २७३ नं. से नं. बदल गये हैं, और बढ़ भी गये हैं। दूसरी बात यह है कि हिन्दी अनुवाद में पूज्य गुरुदेव श्री के समस्त वचनामृत का सीधा गुजराती से हिन्दी अनुवाद हुआ है। पू. गुरुदेव श्री का कोई भी वचनामृत – हिन्दी शास्त्र से नहीं लिया है। गुजराती में से ही सीधा हिन्दी अनुवाद है। तथा श्री पंचाध्यायी, श्री समाधितंत्र, श्री इष्टोपदेश, श्री तत्त्वानुशासन आदि शास्त्रों का भी गुजराती से सीधा हिन्दी अनुवाद हुआ है। शेष सभी अन्य शास्त्रों का आधार सीधे हिन्दी शास्त्रों में से ही लिये हैं। अतः मुमुक्षु पाठकों से नम्र निवेदन है कि कहीं कोई शब्दों की त्रुटि आदि रह गई हो तो कृपया उदार हृदय से सुधारकर पढ़ना जी। वास्तव में तो हमको इस संकलन का कर्ता मत देखो! हमने यह संकलन नहीं किया है। यह तो स्वयमेव अपनी योग्यता से ही होने योग्य हुआ है। हम इसके कर्त्ता तो नहीं हैं परन्तु हम इसमें निमित्त भी नहीं है। और वास्तव में तो हम इसके ज्ञाता भी नहीं हैं। “ हम तो ज्ञायक ही हैं और ज्ञायक ही हमें निरन्तर जानने में आता है।" __जिनकी अपार कृपा से यह महान अपूर्व तत्त्व , अपूर्व ग्रंथ अपने को मिला है उन श्री पू. लालचन्द्र भाई जी के श्रीचरणों में बारम्बार वंदन करके विराम लेते हैं। कु. संध्या जैन, कु. नीलम जैन शिकोहाबाद Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com
SR No.008245
Book TitleIndriya Gyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSandhyaben, Nilamben
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size3 MB
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