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________________ हवा अव्यय अहव । (अथवा) अथवा आम (आम) हा स्वीकार अंतो (अन्तर्) अंदर अवस्सं (अवश्यम् ) अवश्य-अचूक | इओ (इतः) आथी, एथी, वाक्यनी मत्थं (अस्तम् ) आथमवु-अदर्शन आरंभ, आ बाजुयीं पगया (एकदा) एकवार केवलं (केवलम्) केवळ-नकरुं कहि, कहिं (कुत्र) क्यां-कहीं । तहि, तहिं (तत्र) त्यां-तहीं धातुओ अच्चे (अति+इ) अतीत थर्बु- ) संपाउण (संप्राप्नु-सम्+प्र+आप्नु) पार पामवं - सारी रीते पामवं पडिव ( प्रति+पय ) पाम आयय् (आ+दय) आदान करई स्वीकारवं को (कोप) कोप करवो, कुपित परिदेव (परि+दिव) खेदः करको कर विहड़ (वि+घट) बगडवु-नारा आगम् (आ+गम) आवq विघड पामवों अहिट्ट (अधि+स्था-तिष्ठ) अधि ____ष्ठान मेळवq-ऊपरी थर्बु पक्खाल् (प्र+क्षाल) पखाळवू-धोवू पा (एष) एषणा करवी-शोधq समारंभ (सम्+आ+रम्भ) समापरिव्यय (परि+वज) परिव्रज्या रंभ करवो-हणवू लेवी-बंधन रहित थइ चारे कोर णिविज् (नि+विद्य) निर्वेद फरखं पामवो - वाक्यो मराठाओ ठंडा नथी मारो बाप जटावाळा मुनिने मोनो ए गधेडो रंगेलो के पाणी आपशे घोडो, पोठियो अने उंट अमारा बनेवीनो पुत्र बरसे धान्य खाशे वरसे धन पामशे
SR No.007832
Book TitlePrakrit Margopadeshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGurjar Granthratna Karyalay
Publication Year1943
Total Pages294
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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