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________________ छट्टो उद्देसओ षष्ठ उद्देशक LESSON SIX संसार-स्वरूप ५०. से बेमि-संतिमे तसा पाणा, तं जहा-अंडया, पोयया, जराउया, रसया, संसेइया, संमुच्छिमा, उब्भिया, उववाइया। एस संसारे त्ति पवुच्चइ। मंदस्स अवियाणओ। णिज्झाइत्ता पडिलेहित्ता पत्तेयं परिणिव्वाणं। सव्वेसिं पाणाणं सव्वेसिं भूताणं सव्वेसिं जीवाणं सव्वेसिं सत्ताणं अस्सायं * अपरिणिव्वाणं महब्भयं दुक्खं ति बेमि। तसंति पाणा पदिसो दिसासु य। ॐ तत्थ तत्थ पुढो पास आतुरा परितावेंति। संति पाणा पुढो सिया। ५०. मैं कहता हूँ-ये सब त्रस प्राणी हैं, जैसे-अंडज, पोतज, जरायुज, रसज, संस्वेदज, * सम्मूर्छिम, उद्भिज्ज और औपपातिक। यह (त्रस जीवों का) संसार कहा जाता है। ___ मंद (विवेकहीन) तथा अज्ञानी जीव ही संसार में परिभ्रमण करता है। का प्रत्येक प्राणी परिनिर्वाण (शान्ति और सुख) चाहता है। यह देखकर, विचारकर हिंसा से विरत रहे। सब प्राणियों, सब भूतों, सब जीवों और सब सत्त्वों को असाता (वेदना) और अपरिनिर्वाण (अशान्ति) महाभयंकर और दुःखदायी हैं। ऐसा मैं कहता हूँ। ये दुःखों से त्रस्त प्राणी दिशा और विदिशाओं में, सब ओर से भयभीत रहते हैं। तू देख, विषय-सुखाभिलाषी आतुर मनुष्य स्थान-स्थान पर इन त्रसकायिक जीवों को परिताप/कष्ट देते रहते हैं। त्रसकायिक प्राणी पृथक्-पृथक् शरीरों में आश्रित रहते हैं। FORM OF THE WORLD 50. I say~-All these are mobile-bodied beings-andaj, potaj, jarayuj, rasaj, samsvedaj, sammoorchanaj, udbhij and "al aupapatik. This is called the world (of mobile beings). No आचारांग सूत्र *. .ॐ. . ॐ. (६०) Illustrated Acharanga Sutra Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.007646
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year1999
Total Pages569
LanguagePrakrit, English, Hindi
ClassificationBook_English, Book_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, Conduct, & agam_acharang
File Size21 MB
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