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________________ १२८ रायपसेयो। सतोरणस्स सणदिघोसस्स खिखीणीहेमजालपरिखित्तस्स हेमवत्ति' चित्ततिणि सकणगणिजुत्त दारुवस्स मुसपिणद्वारगमडलधूरागस्स कालय समुकय णिमिजतकम्मस्स आइत्तवर तुरगसुसपउत्तस्स कुसल गरछयसारहि सुसपग्गहियस्स सरसय बत्तीसतोरणा परिमडि तीरणवर प्रधानतीरणं यस्य स सतोरणवर स्तस्य सह नन्दिघोपा हादशतूर्यनिनादी यस्य स नन्दिधोप स्तस्य तथा सह किष्किण्य क्षुद्रघण्टा येपामिति म किष्किणीकानि हेमनालानि यानि हेममयदामसमूहा स्. सवासु दिनु पर्यन्तेषु वह प्रदेगेयु परिदिप्ती व्याप्तस्वरय स तथा हेमवत हिमवत्पर्वतभाविचितम्। विचितमनीहारिविचिवोपतन्ति निन्ति नशतरसम्बन्धि कनकनियुक्त कनकविच्चरितदारुकाप्टेयस्य स हैमवतचिनतेनयकनकनियुकदायक स्तस्य - मूव च दितीय कारक' स्वार्थिक पूर्वस्य च दीर्धत्व प्राकृतत्वात्। तथा सुप्टु अतिशयेन सम्यक पिना वहमरकमण्डलन्धुश्व यस्य स सुसपिनद्वारकापडलधूक स्वस्य तथा कालायर्सन लोहेन सुष्टु अतिगयेन कृतन्नमेवाद्यपरिधिर्य वस्य चारको परिफलकचक्रवालकर्म यस्मिन् म कालाय मुतनेमियनकम्मा तस्य तथा पाकीणा गुणेयाप्ता ये वरा प्रधाना स्तुरगास्ते सुष्टु अतिशयेन सम्यक् प्रयुक्तायोविता यस्मिन् म. पाकीयावर तुरगसुमप्रयुक्त तस्य प्राकृतावात् बहुव्रीहावपिक्रान्तस्य परनिपात', तथा सारथिकम्मणि ये कुगला नसस्तैपा मध्ये अतिशयेनों की दक्ष सारथि रतेन सुष्टुः सम्यक् परिगृहीतम्य तथा (सरसयबत्तीस तोरणपरिमपिडयस्म) इति शराणा मत हुई वारदूतूरवाजिव सहित धूपरीनः सुजणमय मालासमूह तपाइकरी चउपपेरछेहदव्याप्त इ हेमनमनोहर पर्वतसबध विचित्र मनोहारिति निभवृक्षसबधी कनकवछीढउ काप्टर्तण करी नीपजादु इयरडीपरि बाधु'छड पाराममंडल अनइधुराजे जेहनी लोहवसख नीरूडीपरिकीधीछद पडोनीफिरतीपाटीदनविषे गुणेकरी आकीर्ण व्याप्त प्रधान धीडाजीतराइजेहा डाहा अग्युरुप अवसरजमार धीद कडायरिंगहिराहदू सुउग नीरजेहमाहि एहबा वीस गुणा भावा तणदू मडितह ककटकवच तैयद सहित अवतसटीपकप जेहनी सहिततार धनुपे भालाप्रमुप प्रेडासनाद तय करी भएर धक जुनीसामगी समकर उड्दू एडारथन एनाना पागणा नई विषद अधवा राजाना ते उरन विपद् अथवा रमणीक मणिनडित भूमितलन विपद्र बनीवाली वेगदकरीजातउ स्तइतेरथ प्रधान मनोज मनोहर काननद मन मुस्खकारी सब्दचिडू दमि समस्तपणि नीकल गीतमपूछद छ तेहतृणन' सन्द एह हूद कदाचित् गुरुकहकर पद अर्थ समर्थनही बलीभगवत कहदू छद यथाहप्टात पाछलीरात्रि' तादनविनावजाडी तेह वैतालिमोवोग्यातहनासब्दते हवाइ उत्तरमदानामद मुझनोगधरस्वरातगवतेणीमूछायीसहित
SR No.007379
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1917
Total Pages289
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_rajprashniya
File Size9 MB
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