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________________ रायपणी । बस ततीतल ताललयगहसुस उत्त महुर सम सुललिय मोहर मउयरि भिवपयसवारसुरद्र सुनविवर चारुरुव दिव्व गट्टसज्म गेय ritवाण भवेयारुवे सिया हता गोयमा एव भूर्णसिया तेसिया वण सातत्य २ तहि २ दे दे बहूतोक्खुडा खुडियाए वाणीया पोक्खरिणीय दहियाउ गुजालियाउ सरपतीवाल सरपंतीयाउ विलपतीयाउ अत्याउ सगहाउ रवयामयकूलाउ ममतीराउ व तत् कुहरगुञ्जन्त वसतन्ति तलताललवगइसुसम्पत्त महुर सम सलिलय मणीहर मजयरिभिण्उयसञ्चार सुरद्र सुय्यति वरचारुरूवं दिव्व पाहसज्भ गेय पगीयाण) मिति यथा प्राक् arerful व्याख्यात तथा भावनीयम् । “नारिसए स६ हदू" प्रगीताना गातुमारभ्यवता यादृश शब्दोऽति मनोहरी भवति स्यात् कथञ्चिद्भवेदेतद्रूपे तेषां नृणाना मणीनां च शब्द' । एवमुक्त े भगवानाह गीत स्यादेव भूतशब्द' । (तसिण वयसण्डाय) मित्यादि, तेपायमिति वाक्यालस्कारी araestat मध्ये aa तवदेशे तव तवं ति तस्यैव देशस्य तत्र तत्र एकदेशे (ब हुई) इति वचन (खड्डू खड्डियाउ) इति जुल्लकाल घवोल घवइत्यर्थ, वाप्यश्चतुरखा पुष्करिण्यो वृत्ताकारा अथवा पुष्कराणि विद्य'ते यासु ता पुष्करिण्यो दीर्घिका ऋज्वनद्य चक्रानद्यी गुज्जालिका बहूनि केवल केवलानि पुष्पावकीयानि सरासि एकपक्तना व्यवस्थितानि सर पक्तिस्तावद्वनसर पक्तय, तथा येषु सर सुपक्ता व्यवस्थितेषु कूपोदक घ्राणालिकया सञ्चरन्ति स सर पक्तिस्तावद्धन सर' मर' uha, तथा विलानीव विलानि कूपास्तेप्रा पक्तयों विलपतय एताश्च सवा अपि कथ भूता इत्याह (त्या) स्फटिक हि निमलप्रदेशा' श्लक्ष्णा' श्लक्ष्णपुङ्गलनिप्पादितवहि प्रदेशा' श्लक्ष्णदल निष्य. पटवत तथा रजतमय रूप्यमय कूल यासा ता रजतमयकूला स्तथा समन गत्ताभावात विषमप्तीर > १३२ सुमपयूक्तकद्दीद्र पीठ्डस्वरकोकिलावत वंसतीस्वरि अनुस्वरगततेसमघोलताम्रकारसहित कानन सुखपावतेमनोहर मृदूडब्यारिसहित पदनुसचारतेरिभितकछीद्र मृदुचारभितपदन विष सचारकइजेडनु सोभननति इडकै जेहनड प्रधानभलुरूपद्रज्ञेहनु एकठुप्रधान नाटकन इस ज्ञकराउ गीतप्रतिगाती हूइ किनरादिक देवताने हनुजेहसन्दहुवै तेहव उतृनुसन्दद्दू कदाचित बोलतु भगवतकहकहेगीतम एम हूइ कदाचित तेह वनखडमाहि तिहार तेर देसइप्रदे मिसेसे नाही २ चाविरुदूधुपणाकमलकड निहां पुष्करणीश्रथधावाटली लावावेद्रीर्घका वाक जालिका तलावनीपक्तिते श्रखियासपास दूधद्यातलावनीपक्ति तेसरसपक्ति कुयानीपति म्फाटिकवत् निमल सूक्ष्मपुद्गलिनीपनीहरू तेहानारूपामयकूलतटछंद्र विषमनथी ऊतरबान उठाम जेह्ननु वज्ररत्नमनपपायइंजडीक नपनीवसुवर्णमय भूमितल कद्र सुवर्णपीति कान्ति सभ्रमहा -
SR No.007379
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Shwetambar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRai Dhanpatsinh Bahadur
PublisherRai Dhanpatsinh Bahadur
Publication Year1917
Total Pages289
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Conduct, F000, F999, & agam_rajprashniya
File Size9 MB
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