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________________ तेरापंथ-मत समीक्षा। धर्म ओर चारीत्रधर्म, सो प्रतिमा पूजणेमे वो मंदीर कराणेमे वो संग कडाणेमे कोनसा धर्म है। उत्तर-ठाणांगके दुसरे ठाणेके पृष्ठ ४९ में धर्म दो प्रकारका कहाः-श्रुतधर्म तथा चारित्र धर्म, ( ' सूत्रधर्म ' यह तो प्रश्नही झूठा है) इन दोनों प्रकारके धर्मोके कहनेसे दूसरे धर्मोका निषेध नहीं होता है। जैसे उसी ठाणांगके १०२-१०३ पृष्ठमें दो प्रकारके बोधी दिखलाए हैं । ज्ञानबोधी तथा दसणबोधी। तथा दो प्रकारके बुध दिखलाए हैं । ज्ञानबुध-दसणबुध। तो इससे अन्यबोधी तथा अन्य बुधोंका निषेध नहीं हो सकता है । दूसरे ठाणेमें दो दो वस्तुएं गिनाई हुई हैं। अतएव उसमें भी दोही वस्तुएं लिखी हैं। इसके सिवाय देखिये, तीसरे ठाणेमें अरिहंतके जन्मके समय, दीक्षाके समय तथा केवलज्ञानके समय मनुष्यलोकमें इन्द्र आते हैं, ऐसा अधिकार है, तो इससे क्या निर्वाणके समय तथा च्यवनके समय इन्द्र नहीं आते हैं, ऐसा सिद्ध होता है ? कदापि नहीं । पांचो कल्याणकोंके समय इन्द्र आते हैं। इस तरह दो या तीन वस्तुएं गिनानेमे अन्य वस्तुओंका अभाव या निषेध समझ लेना, यह बड़ी भारी भूल है । प्रतिमापूजनी, मंदिर कसना तथा संघ निकालना ये दर्शनधर्ममें कहे जाते हैं । जरा आँखें खोल करके तीसरे ठाणेमें पृष्ठ ११७ वाँ देखो, उसमें लिखा है कि-जिन प्रतिमाकी तरह साधुकी भक्ति करता हुआ जीव शुभ दीर्घायुष्य कर्मको उपाजैन करता है । ' वह पाठ इस तरह है: "तिहिं ठाणेहिं जीवा सुहदीहाउअत्ताए कम्म
SR No.007295
Book TitleTerapanth Mat Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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