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________________ तेरापंथ-मत समीक्षा। पगरेंति । तं जहा णो पाणे अश्वाश्त्ता हवइ, जो मुसं वश्त्ता हवइ तहारूवं समणं वा वंदित्ता नमं. सित्ता सकारेत्ता सम्माणेत्ता कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेत्ता मणुन्नेणं पीइकारएणं असणपाणखाइमसाश्मेणं पडिलाभेत्ता हव श्च्चेएहिं तिहिं ठाणेहिं जीवा सुहदीहाउअत्ताए कम्म पगरेति ।" ___ अर्थात्-इन तीन स्थानों करके जीव शुभ दीर्घ आयुष्य कम उपार्जन करता है । वे तीन स्थान ये हैं:-प्राणोंको नहीं मार करके अर्थात् जीवदया करके झूा नहीं बोल करके अर्थात् सत्य बोल करके और तथारूप दयालु श्रमणको वन्दणा करके-नमस्कार करके--सत्कार दे करके-सम्माम दे करके तथा कल्याण-मंगलके निमित्त जिनप्रतिमाकी तरह उस श्रमणकी पर्युपासना करके तथा उस श्रवणको मनोज्ञ-प्रीतिकारक अशन-पान खादिम-स्वादिम आहार देकरके-प्रतिलाभ करके जीव शुभ दीर्घायु उपार्जन करता है। देखो, इस पाउमें जब जिन प्रतिमाकी उपमाही दी, तब जिन प्रतिमाकी पूजा स्वतः सिद्ध हुई । प्रश्न-१२ उत्राधैनरा २८ मा अधनेमै ३६ मी गाथामे कम खपाणवरी करणी २ केही, एक तप दुसरे संजमा सो प्रतिमा पूजने वो मंदिर कराने वो सीगकडानेमें कानसी करणी हुई।
SR No.007295
Book TitleTerapanth Mat Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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