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________________ ४८ तेरापंथ-मत समीक्षा। ३ कोणिकराजा वगैरह बडे आडंबरसे प्रभुको बंदणा करनेके लिये गये । बीचमें असंख्याता जीवोंकी हिंसा हुई, तो उनको भी मंदबुद्धिया कहना चाहिये । . ४ नदीमें पड़ी हुई साध्वीको साधु निकाले, उसमें अकायके जीवोंकी हिंसा होती है । स्त्री स्पर्शका दोष लगता है, तो तुम्हारे हिसाबसे वह साधुभी मंदबुद्धिया हो जायगा। ___ इत्यादि बहुतसे ऐसे धर्मके कार्य हैं, जिनमें हिंसा दिखाई देती है, परन्तु वह हिंसा गिनी नहीं जाती । और यहाँपर जो 'देवमंदिर' तथा ' प्रतिमा' कहे हैं, वे 'जिनमंदिर तथा 'जिन प्रतिमा' नहीं हैं, ऐसा निश्चय सिद्ध होता है। क्योंकिउसी सूत्रके ३३९ वें पृष्ठमें दयाके ६० नाम दिखलाये हैं । उनमें ५७ वाँ नाम 'पूजा' दिखलाया है। (किसी भी जगह हिंसाकी करणीमें 'पूजा' का नाम आया ) तथा उसी सूत्रके ४१५ वें पृष्ठमें चैत्य-प्रतिमाकी वेयावच्च ( भक्ति) करता हुआ साधु निर्जरा करे, ऐसा अधिकार है । इससे भी सिद्ध होता है कि-पूर्वका पाठ अनार्योंका है । अनार्यका पाठ ले करके तीर्थकर महाराजकी पवित्र पूजाका निषेध करनेको तय्यार होते हो, इससे तुम्हारे पर भावदया उत्पन्न होती है । कुछ समझविचार करके लिखो-बोलो जिससे भव भ्रमणता न हो। प्रश्न-१० प्रश्नव्याकर्णरा पांचमा आश्रवदुवारमै प्रीयहारा नांव चालीया जीणमे प्रतमारो नांव भी सांमल चल्यीयो, ठाणांयंगजी तीजे ठाणे पियो अनर्थरो मूलकयो तो फेर प्रीग्रासे तीर्णा कस सास्त्रकी रूसे परूफ्ते हो, प्रतिमा प्रतक्ष प्रीग्रामें चाली हैं।
SR No.007295
Book TitleTerapanth Mat Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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