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________________ प्राचीन प्रमाणं - देखकर पिता श्री से पूछा कि यह क्या है ? तब उसने पुत्र को उत्तर दिया बेटा ! तूं स्वस्थ हो! अभी तूं मृत्यु के मुख में चला गया था; परन्तु कृपासागर,, गुण आगर इन पूज्य श्री सूरिजी ने तुझको और सकुटुम्बादि मुझको पुनर्जीवन लाभ कराया है। इसे सुन सब ब्राह्मणों सहित वह कुमार उठ कर नमस्कार करने की इच्छा से गुण गम्भीर गुरुजी के पास गया और उनके पैरों तले मस्तक टेक कर उन्हें सादर प्रणाम करने लगा। ___उस कुमार ने कहा-प्रभो ! आज मुझको जीवनदान देकर आप ने "ब्राह्मण और जैन साधु के बैर वाली" कहावत को मिथ्या कर दिया है, हे गुरो ! आज से आप श्रावक वैश्यों के समान हम ब्राह्मणों के भी पूज्य हैं-यह बात अन्य तत्रस्थ ब्राह्मणों ने भी कही। उस दिन से लेकर ब्राह्मण भी वैश्यों के समान उनका आदर करने लगे और उनकी आज्ञा मानने लगे-सूरिजी इस तरह अपने जैन शासन का प्रभाव फलाते वहाँ से अगाडी गए और १८ हजार जंघों (संघ) को भी जैन धर्म का प्रतिबोध किया। उपकेश चरित्र श्लोक ८७ से १०२ पहिले जो राजा उत्पलदेव के जमाई तिलोकसिंह को सौंप काटना और आचार्य श्री के चरणप्रक्षालन के जल से विष उतर जाना और इस लेख में ब्राह्मण पुत्र को साँप काटना और प्रक्षालन के जल से निर्विष होना इन दोनों घटनाओं के समान होने से दोनों को एक मानने की कोई व्यक्ति भूल न करे । कारण राजा के जमाई की घटना उपकेशपुर में महावीर मन्दिर की प्रतिष्ठा पूर्व की हैं और ब्राह्मण पुत्र की घटना प्रतिष्ठा बाद की है। ब्राह्मण पुत्र के अधिकार में लिखा है कि जैसे वैश्य लोग आपके श्रावक हैं वैसे हम भी हैं इससे सिद्ध होता है कि ब्राह्मण पुत्र वाली घटना के पूर्व उपकेशपुर में श्रावक बन चुके थे और उन्होंने ही महावीर मन्दिर की प्रतिष्ठा करवाई थी अतएव पूर्वोक्त दोनों २ घटनाएँ अलग अलग ही समझना चाहिये। और ऐसा होना असंभव भी नहीं है जहाँ जिसका उदय होना होता है तब कोई न कोई निमित्त कारण मिल ही जाता है। खैर ! कुछ भी हो पर यह घटना वीरात् ७० वर्ष की अवश्य है।
SR No.007293
Book TitleOswal Ki Utpatti Vishayak Shankao Ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1936
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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