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________________ ओसवालों की उत्पत्ति अवादी दद्य भगवन् ! जीवितं ददता मम ॥ विप्र श्रमणयो (र, मिति मिथ्याकृतं वचः ॥६६॥ इतः प्रभृति नः पूज्याः, गुरवो वणिजा मिव ॥ 'अन्यै रपि तदा विगै, स्तदुक्तं बहमन्यत ॥ १० ॥ तदा प्रभृति सर्वेऽपि, ब्राह्मणाः श्रावका इव ।। तदगौरवं विदधिरे, तदाज्ञां नाव मेनिरे ॥१०१॥ एवं प्रभावयन्तस्ते, सूरयो जैन शासनम् ॥ अष्टादश सहस्राणि, जवानां (जंघानां)प्रत्यबोधयत्॥१०२॥ "उपकेश गच्छ चरित्र श्लोक ८७ से १०२" भावार्थः-"---उस समय देव संयोग से ब्राह्मण श्रेष्ठ-एक कोटयधीश ब्राह्मण के इकलौते पुत्र को काले साँप ने डस लिया और वह बेहोश होगया उसके पिता ने विषवैद्यों (गारुडिकों) द्वारा, जड़ी बूटियों से, तथा नाना प्रयत्नों से अनेक उपचार किए परन्तु वे सब दुष्ट के साथ किए गए उपकार के सदृश व्यर्थ हुए, तदनन्तर शोक विह्वल हो उसके पिता ने उसे पालकी में रक्खा; और उसके कुटुम्बी ब्राह्मण रोते हुए उस शव को ले श्मशान घाट गए। सूरिजी ने समाधि द्वारा उस ब्राह्मण पुत्र को जीवित जान धर्म की उन्नति के लिए शोक संतप्त उस ब्राह्मण को जल्दी अपने पास बुलाया और कहा-हे ब्राह्मण प्रवर ! यदि तेरा पुत्र मेरे मन्त्रों से पुनः सचेत होजाय, तो बदले में तूं क्या करेगा ?- उसने उत्तर दिया मैं आज से आपका दास बन कर रहूँगा-और ऐसा मानूँगा मानों पूज्य आपने मुझ सकुटुम्ब को जीवन दान दिया हो-हे प्राचार्य प्रवर ! ज्यादा क्या कहूँ आप ही मेरे मा बाप और स्वामी देवता हैं। ब्राह्मण की यह नम्र प्रार्थना सुनकर सूरिजी ने अपने पैर धोकर वह जल उस ब्राह्मण को देकर भेजा उसने अपने मृत. प्राय ( मूर्छित ) पुत्र को शिविका से नीचे उतार उस जल से अभिषिक्त किया ( छींटा) अमृत वर्षेण के समान उस पादक्षालन जल से अभिषिक्त वह ब्राह्मण एक दम उठ बैठा-मानों नींद से जगा हुआ प्राणी उठा हो, और उसने उठकर उस जनसमुदाय और श्मशान आदि को
SR No.007293
Book TitleOswal Ki Utpatti Vishayak Shankao Ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1936
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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