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________________ सवालों की उत्पत्ति “विक्रम सं० १०७३ में उपकेशगच्छाचार्य देवगुप्तसूरि ने नवपद प्रकरण लघुवृत्ति की रचना की वि० सं० २००२ पाटन नगर में उपकेशीय महाबीर मन्दिर में इस लघुवृत्ति पर बृहद्वृत्ति की रचना की ।"* इस भाँति सैकड़ों हजारों शिलालेख और प्राचीन ग्रंथ इस समय विद्यमान हैं जिनमें उपकेशवंश और उपकेशगच्छ का प्रयोग पाया जाता है, पर कहीं शियों या ओसवाल शब्द नजर नहीं आते । जब से उपकेशपुर का अपभ्रंश आशियों हुआ तब से कहीं २ इस शब्द का भी उल्लेख हुआ है पर वह बहुत थोड़े प्रमाण में और समीपवर्ती समय विक्रम की तेरहवीं शताब्दी से हुआ है, जैसे - " सं० १२१२ ज्येष्ठ वदि ८ भौमे श्री कोरंटगच्छे श्री नन्नाचार्य संताने श्री ओशवंशे मंत्रि धाधूकेन श्री विमल मन्त्री हस्तीशालाया श्री आदिनाथ समवसरणं कारयांचके श्री नन्नसूर पढ़े श्री कक्कसूरिभिः प्रतिष्ठितं वेलापन्नी वास्तव्येन । " (स० जिन विजयजी सं० शि. दू. लेखाक २४८ ) इसके पहिले कहीं पर सवाल शब्द का प्रयोग नजर नहीं श्राया है। पूर्वोक्त ऐतिहासिक प्रमाणों से यह सारांश निकलता है कि ओसवाल शब्द यह असली ( मूल शब्द ) नहीं है किन्तु उपकेश का अपभ्रंश है । पहिले जो जैन धर्माऽनुयायी उपकेश वंशीय थे वे ही आज ओसवाल नाम से विख्यात है । और इनका प्रारम्भ विक्रम की तेरहवीं शताब्दी से होता है। श्रीमान् बाबू पूर्णचन्द्रजी नाहर अपने शिलालेख संग्रह खण्ड तीसरे में पृष्ट २५ पर " ओसवालज्ञाति नामक ” लेख में लिखते हैं I GRAND * इस स्थान पर हमने समय का निर्णय न कर केवल शब्द को ही सिद्ध करने का प्रयक्ष किया है ।
SR No.007293
Book TitleOswal Ki Utpatti Vishayak Shankao Ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1936
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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