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________________ Novvvvvvom शंकाओं का समाधान "इतना तो निर्विवाद कहा जा सकता है कि ओसवाल में प्रोस शब्द ही प्रधान है ओस शब्द भी उएस शब्द का रूपान्तर है और उएस उपकेश का प्राकृत है, इसी प्रकार मारवाड़ के अन्तर्गत "प्रोशियां" नामक स्थान भी उपकेश नगर का रूपान्तर है" जैनाचार्य रत्नप्रभसूरिजी वहाँ के राजपूतों को जीव हिंसा छुड़ा कर उन लोगों को दीक्षित करने के पश्चात् वे राजपूत लोग उपकेश अर्थात् ओसवाल नाम से प्रसिद्ध हुए" श्रीमान् बाबू जी का कथन भी ऊपर के प्रमाणों से सर्वथा मिलता है अतएव सिद्ध हुआ कि उपकेश का अपभ्रंश ओशियों है, और उसे आबाद करने वाले श्रीमाल नगर के राजकुमार श्री उत्पलदेव के नाम के साथ पंवार शब्द किसी स्थान पर नहीं है, और जिन्हें आज हम ओसवाल कहते हैं पूर्व में उन्हीं का असली नाम उपकेश वंश था । उपरोक्त दोनों बातों का निर्णय करने का सारांश यही है कि प्रथम तो ओसवाल जाति की प्राचीनता के विषय में विक्रम की तेरहवीं शताब्दी से पूर्व कालीन समय का अन्वेषण करने में कोई अपने समय को व्यर्थं व्यय न करें और न इस विषय की दलीलें कर दूसरों का समय नष्ट करें, कारण ओसवाल शब्द मूल नहीं पर उपकेश का अपभ्रंश है अतः जिन्हें यदि बिक्रम की तेरहवीं शताब्दी से पूर्व इस जाति की प्राचीनता के प्रमाण ढूंढने हों वे "उपकेश वंश के नाम का प्रमाण खोजे क्योंकि इस तेरहवीं शताब्दी से पहिले इस ओसवाल जाति का यही नाम प्रचलित था और जब उपकेशवंश की प्राचीनता सिद्ध हो जायगी तब ओसवालों की प्राचीनता स्वतः सिद्ध है क्योंकि एक ही जाति के समयाऽनुसार दो नाम है। - दूसरा सारांश-उपकेशपुर बसाने वाले श्रीमाल नगर के उत्पलदेव और हैं तथा श्राबू के उत्पलदेव परमार और हैं एवं दोनों के समय में १४०० वर्ष का अन्तर है इसलिए कोई भी उपकेशपुर बसाने वाले श्रीमालनगर के राजकुमार उत्पलदेव को परमारवंशीय समझने की भूल.
SR No.007293
Book TitleOswal Ki Utpatti Vishayak Shankao Ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1936
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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