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________________ प्रा० जै० इ० तीसरा भाग जब इसका पूरा पता नहीं चला तो इस खोज के आन्दोलन को भारत सरकार ने अपने हाथ में ले लिया। यह शिलालेख यहाँ से इङ्गलैण्ड भेजा गया। वहाँ के वैज्ञानिकों ने उसकी विचित्र तरह से फोटू ली। भारतीय पुरातत्वज्ञ भी नींद नहीं ले रहे थे। इन्होंने भी कम प्रयत्न नहीं किया। महाशय जायसवाल, मिस्टर राखलदास बनर्जी, श्रीयुत भगवानदास इन्दर्जी और अन्त में सफलता प्राप्त करनेवाले श्रीमान् केशवलाल हर्षदराय ध्रुव थे। श्री० केशवलाल ने अविरल प्रयत्न से इस लेख का पता बताया। तब से सन् १६१७ अर्थात् सौ वर्ष के प्रयत्न से अन्त में यह निश्चित हुआ कि यह शिलालेख कलिंगाधिपति महामेघबाहन चक्रवर्ती जैन सम्राट् महाराजा खारवेल का है। ___ सचमुच बड़े शोक की बात है कि जिस धर्म से यह शिलालेख सम्बन्ध रखता है, जिस धर्म की महत्ता को बतानेवाला यह लेख है, जिस धर्म के गौरव के प्रदर्शन करनेवाला यह शिलालेख है उस जैन धर्मवालों ने आज तक कुछ भी नहीं किया। जिस महत्वपूर्ण विषय की ओर ध्यान देने की अत्यन्त आवश्यकता थी वह विषय उपेक्षा की दृष्टि से देखा गया । क्या वास्तव में जैनियों ने इस विषय की ओर आँख उठाकर देखा तक नहीं ? क्या कृतज्ञता प्रकट करना वे भूल ही गये ? जहाँ चन्द्रगुप्त और सम्प्रति राजा के लिए जैन ग्रन्थकारों ने पोथे के पोथे लिख डाले वहाँ क्या श्वेताम्बर और क्या दिगम्बर किसी भी आचार्य ने इस नरेश के चारित्र की ओर प्रायः क़लम तक नहीं उठाई कि
SR No.007289
Book TitlePrachin Jain Itihas Sangraha Part 03 Kaling Desh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year1935
Total Pages44
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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