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________________ कलिङ्ग देश का इतिहास जिसके आधार से आज हम जनता के सामने खारवेल का कुछ वर्णन रख सकें । क्या यह बात कम लज्जास्पद है ? उधर आज जैनेतर देशी और विदेशी पुरातत्वज्ञ तथा इतिहास प्रेमियों ने साहित्य संसार में प्रस्तुत लेख के सम्बन्ध में धूम मचादी है । उन्होंने इसके लिए हजारों रुपयों को खर्चा। अनेक तरह से परिश्रम कर पता लगाया। पर जैनी इतने बेपरवाह निकले कि उन्हें इस बात का भान तक नहीं। आज अधिकांश जैनी ऐसे हैं जिन्होंने कान से खारवेल का नाम तक नहीं सुना है । कई अज्ञानी तो यहाँ तक कह गुज़रते हैं कि गई गुज़री बातों के लिए इतनी सरपच्ची तथा मगज़मारी करना व्यर्थ है। बलिहारी इनकी बुद्धि की ! वे कहते हैं इस लेख से जैनियों को मुक्ति थोड़े ही मिल जायगी । इसे सुनें तो क्या और पढ़ें तो क्या ? और न पढ़ें तो क्या होना-हवाना ! अर्वाचीन समय में हमें अपने धर्म का कितना गौरव रह गया है इस बात की जाँच ऐसी लच्चर दलीलों से अपने आप हो जाती है। जिस धर्म का इतिहास नहीं उस धर्म में जान नहीं । क्या यह मर्म कभी भूला जा सकता है ? कदापि नहीं । ___सजनो ! सत्य जानिये । महाराज खारवेल का लेख जो अति प्राचीन है तथा प्रत्यक्ष प्रमाण भूत है जैन धर्म के सिद्धान्तों को पुष्ट करता है । यह जैन धर्म पर अपूर्व प्रभाव डालता है। यह लेख भारत के इतिहास के लिए भी प्रचुर प्रमाण देता है । कई बार
SR No.007289
Book TitlePrachin Jain Itihas Sangraha Part 03 Kaling Desh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year1935
Total Pages44
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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