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________________ कलिङ्ग देश का इतिहास सुरक्षित न रहने के कारण घिस भी गया था । कई अक्षर मिटने लग गये थे और कई अक्षर तो बिल्कुल नष्ट भी हो चुके थे । इस पर भी लेख पालीभाषा से मिलता हुआ शास्त्रों की शैली से लिखा हुआ था । इस कारण पादरी साहब लेख का सार नहीं समझ सके । तथापि पादरी साहब भारतियों की तरह हताश नहीं हुए। वे इस लेख के पीछे चित्त लगाकर पड़ गये । उन्होंने इस शिलालेख के सम्बन्ध में अँगरेजी पत्रों में खासी चर्चा प्रारम्भ करदी | सारे पुरातत्वियों का ध्यान इस शिलालेख की ओर सहज ही में आकर्षित हो गया । इस शिलालेख के विषय में कई तरह का पत्रव्यवहार पुरातत्वज्ञों के आपस में चला । अन्त में इस लेख को देखने की इच्छा से सबने मिलकर एक तिथि निश्चत् की । उस तिथि पर इस शिलालेख को पढ़ने के लिए सैकड़ों यूरोपियन एकत्रित हुए । कई तरह से प्रयत्न करके उन्होंने उसका मतलब जानना चाहा पर वे अन्त में असफल हुए। इतने पर भी उन्होंने प्रयत्न जारी रक्खा । इस शिलालेख के कई फोटू लिये गये । कागज़ लगा लगा कर कई चित्र लिखे गये । यह शिलालेख चित्र के रूप में समाचार पत्रों में भी प्रकाशित हुआ । इस शिलालेख पर कई पुस्तकें निकलीं । इस प्रयत्न में विशेष भाग निम्नलिखित यूरोपि - यनों ने लिया | डॉ. टामस, मेजर कीट्ट, जनरल कनिंग हाम, प्रसिद्ध इतिहासकार विन्सटेंट, डॉ. स्मिथ, बिहार गवर्नर सर एडवर्ड आदि आदि । 1
SR No.007289
Book TitlePrachin Jain Itihas Sangraha Part 03 Kaling Desh ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year1935
Total Pages44
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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