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________________ खण्ड] :: सिंहावलोकन:: प्राग्वाटज्ञातीय परम जिनेश्वरभक्त श्रे० देवचन्द्र और श्री गिरनारतीर्थ-पीढ़ी 'शा० देवीचन्द लक्ष्मीचन्द' विक्रम की उन्नीसवीं शताब्दी विक्रमीय उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में बड़नगर (गूर्जर) से प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० देवचन्द्र पाकर जूनागढ़ में बसा था । उसके साथ उसकी बहिन विधवा लक्ष्मीबाई भी आगई थी। दोनों भ्राता और भगिनी बड़े ही उदार, धर्मिष्ठ थे। नित्य जिनेश्वरप्रतिमा की सेवा-पूजा करते और पाठों ही प्रहर प्रभु-भजन में व्यतीत करते थे। देवचन्द्र के कोई संतान नहीं थी और उसकी बहिन लक्ष्मीबाई के भी कोई संतान नहीं थी। दोनों ने अपनी आयु का अंत आया हुआ देख कर उनके पार्श्व में जितना भी द्रव्य था, वह तीर्थाधिराज भगवान् नेमनाथ के अर्पण कर दिया और उससे तीर्थ की व्यवस्था करने के लिए एक जैन पीढ़ी का निर्माण किया और उसका नाम 'देवचन्द्र लक्ष्मीचन्द्र' रक्खा गया । जूनागढ़ के श्री संघ ने दोनों भ्राता-भगिनी का अति ही अभिनंदन किया और दोनों के नाम की तीर्थपीढ़ी स्थापित करके उनका महान् स्वागत किया। उक्त पीढ़ी के स्थापित होने के पूर्व तीर्थ की देख-रेख गोरधनवासी प्राग्वाटज्ञातीय जगमाल और प्राग्वाटज्ञातीय खजी इन्द्रजी करते थे। आज शा. 'देवचन्द्र लक्ष्मीचन्द्र पीढ़ी' का कार्य बहुत ही सम्पन्न हो गया है । नगर में इसका विशाल कार्यालय है। इस के आधीन दो विशाल धर्मशालायें हैं। पर्वत पर भी इसकी ओर से पीढ़ी है और यात्रियों के ठहरने के लिये वहाँ भी सर्व प्रकार की सुविधा है। सिंहावलोकन विक्रम की चौदहवीं शताब्दी से उन्नीसवीं शताब्दी तक जैनवर्ग की विभिन्न स्थितियाँ और उनका सिंहावलोकन मुहम्मद गौरी की पृथ्वीराज चौहान पर ई. सन् ११९२ वि० सं० १२४६-५० में हुई विजय से यवनों का भारत में राज्य प्रारंभ-सा हो गया । राजपूत राजा सब हताश हो गये । मुसलमान आक्रमणकारी ने सहज ही में इस्लामधर्म और आर्यधर्म सरसुती, समन, कुहरामा, हांसी को जीत लिया और अजमेर पर आक्रमण करके समस्त तथा जैन मत राजस्थान पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर दिया । अजमेर में गौरी ने सहस्रों भारतियों को तलवार के घाट उतारा । सैकड़ों मंदिरों को तोड़ा और उनकी जगह मस्जिद और मकबरे बनवाये। जैन को अजैन और अजैन को जैन बनाने का कार्य जो दोनों मतों के धर्म-प्रचारक कर रहे थे, अब भारत में तीसरी और वह भी महाभयंकर स्थिति उत्पन्न हो जाने के कारण बंद होने लग गया। अब दोनों के मंदिर और मठ तोड़े जाने गि तीर्थ इति पृ०५६ (चरण-लेख)
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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