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________________ :: प्राग्वाट - इतिहास :: ३२२ ] I गये हैं । ये दोनों भ्राता जिनेश्वरदेव के परम भक्त थे। ये बड़े उदार एवं सज्जनात्मा श्रावक थे । इन्होंने बादशाह ग्यासुद्दीन खिलजी की आज्ञा प्राप्त करके श्रीमद् सुधानन्दसूरि की तत्त्वावधानता में श्री माण्डवगढ़ से श्री शत्रुंजयमहातीर्थ की संघयात्रा करने के लिये संघ निकाला था। संघ जब उबरहड्ड नामक ग्राम में आया तो वहाँ मुनि शुभरत्नवाचक को बड़ी धूम-धाम से सूरिपद प्रदान करवाया गया । मार्ग में ग्राम, नगरों के जिनालयों में दर्शन, पूजन का लाभ लेता हुआ संघ अनुक्रम से सिद्धाचलतीर्थ को पहुंचा । वहाँ दोनों भ्राताओं ने आदिनाथप्रतिमा के दर्शन किये और अतिशय भक्ति भावपूर्वक सेवा-पूजन किया। संघ ने दोनों भ्राताच्चों को संघपतिपद से अलंकृत किया । तत्पश्चात् संघ सिद्धाचल से लौट कर सकुशल माण्डवगढ़ आ गया। दोनों संघवी भ्राताओं ने संघ-भोजन किया और संघयात्रा में सम्मिलित हुये प्रत्येक सधर्मी बन्धु को अमूल्य पहिरामणी देकर अत्यन्त कीर्त्ति का उपार्जन किया । १ [ तृतीय सिरोही के प्राग्वाटज्ञातिकुलभूषण संघपति श्रेष्ठि ऊजल और काजा की संघयात्रायें विक्रम की सोलहवीं शताब्दी विक्रम की सोलहवीं शताब्दी के प्रारम्भ काल में सिरोही के राजा महाराव लाखा थे । ये 1 वीर एवं पराक्रमी थे । इनके सम्मानित एवं प्रतिष्ठित जनों में प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० ऊजल और काजा नामक दो भ्राता भी थे । ये दोनों भ्राता सिरोही में रहते थे । राजसभा, समाज और राज्य में इनकी अच्छी प्रतिष्ठा थी । इन्होंने शत्रुंजयमहातीर्थ की बड़े ही धूम-धाम से संघयात्रा की थी । उस संघयात्रा में सिरोही के महामात्य और कई संरक्षक अश्वारोही सम्मिलित हुये थे। दोनों भ्राताओं ने संघयात्रा में पुष्कल द्रव्य व्यय किया था । 1 एक वर्ष दोनों भ्राताओं ने श्रीमद् सोमदेवसूरि की अध्यक्षता में श्री जीरापल्लीतीर्थ की सात दिवस पर्यन्त यात्रा करी और यात्रा से सिरोही में लौटकर भारी समारोह के मध्य गुरुदेव की शास्त्रवाणी को श्रवण करके ८४ चौरासी आर्य दम्पतियों के साथ में शीलव्रत के पालन करने की प्रतिज्ञा ली। इस प्रकार धन का सदुपयोग करके, तम एवं वैभव, विषय-वासनाओं से विरक्त बन करके दोनों भ्राताओं ने अपने समय में अपनी और अपने कुल की अक्षय कीर्त्ति बढ़ाई |२ संघपति सिंह की बुदगिरितीर्थ की संघयात्रा वि० सं० १५३१ वि० सं० १५३१ वैशाख शु० २ सोमवार को सारंगपुरनिवासी प्राग्वाटज्ञातीय आभूषणस्वरूप और तीर्थ यात्राओं के करने वाले और संघयात्राओं के कराने वाले तथा सत्रागार खुलवाने वाले संघवी वेलराज की धर्मपत्नी अरखूदेवी के पुत्ररत्न संघनायक संघवी जेसिंह ने स्वस्त्री माणिकी, पुत्री जीविणी आदि प्रमुख कुटुम्बसहित मालवा के श्री संघ के साथ में श्री अबु दगिरितीर्थ की संघयात्रा की और श्री नेमिनाथ भगवान् के अतिशय भक्ति और भावना से दर्शन किये |३ १- जै० सा० सं० इति पृ० ४६७-६८ २- जै० सा० सं० इति ० पृ० ४६६ ३- प्र० प्रा० जे० ले० सं० भा० २ ले० ३८८ ।
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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