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________________ खण्ड ] न्यायोपार्जित द्रव्य से मंदिरतीर्थादि में निर्माण-जीर्णोद्धार कराने वाले प्रा०ज्ञा० सद्गृहस्थ-सं० सीपा के पुत्र-पौत्रःः[ २६१ १३ बुधवार को अंजनश्लाका-प्राणप्रतिष्ठोत्सव करके श्रीमद् विजयहीरसूरि के कर-कमलों से निजमन्दिर में श्री आदिनाथ भगवान् की श्वेत प्रस्तर की विशाल तीन मूलनायक प्रतिमायें पश्चिमाभिमुख, पूर्वाभिमुख और उत्तराभिमुख प्रतिष्ठित करवाई। सं० सीपा के पौत्रों में वीरपाल का पुत्र मेहाजल अधिक यशस्वी और श्रीमंत हुआ। इसने वि० सं० १६६० में श्री शजयमहातीर्थ की विशाल संघ के साथ में यात्रा की थी और पुष्कल द्रव्य व्यय करके अपार यश एवं मान प्राप्त किया था । मेहाजल की स्त्री मनोरमादेवी की कुक्षी से उत्पन्न गुणराज और द्वितीय स्त्री कल्याणदेवी की कुक्षी से उत्पन्न कर्मराज भी अधिक योग्य और प्रख्यात हुये । प्राप्त बिंबों में आधे से अधिक बिंब कर्मराज के द्वारा तथा अवशिष्ट में से भी अन्य परिजनों द्वारा प्रतिष्ठित बिंबों की संख्या से अधिक गुणराज और उसके पिता मेहाजल द्वारा प्रतिष्ठित हैं। ये सर्व प्रतिमायें वि० सं० १७२१ ज्येष्ठ शुदी ३ रविवार को श्रीमद् विजयराजसूरि द्वारा प्रतिष्ठित की गई थीं। सं० सीपा के तृतीय पुत्र सं० सचवीर के पौत्र सं० धनराज और नत्थमल तथा नत्थमल के पुत्र जीवराज तक अर्थात् सं० सदा से ६ पीढ़ी पर्यन्त इस कुल की कीर्ति बढ़ती ही रही और राज्य और समाज में मान अक्षुण्ण रहा । श्री चतुर्मुख-आदिनाथ-जिनालय आज भी इस कुल की कीर्ति को अमर बनाये हुये है। सं० सीपा के परिजन एवं वंशजों ने चौमुखा-जिनालय के अतिरिक्त सिरोही के श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथजिनालय और श्री दशा-ओसवालज्ञाति के श्री आदीश्वर-जिनालय में भी अनेक जिनबिंबों की प्रतिष्ठायें करवाई, जैसा उपरोक्त जिनबिंबों की सूची से प्रकट होता है । 'संवत् १६३४ वर्षे शाके १५०१ प्रवर्त्तमाने हेमंत ऋतौ मार्गशिर मासे शुक्ल पक्षे पंचम्यां तिथौ । महाराय श्री महाराजाधिराज श्री सुरताणजी। कुअरजी श्री राजसिंहजी विजयीराज्ये श्री सीरोहीनगरे श्री चतुर्मुखप्रासाद करापितं ॥ श्री संघमुख्य श्री सं० सीपा भार्या सरुपदे पुत्र सं० आसपाल सं० वीरपाल स० सचबीर । तत्पुत्रा (पौत्र) स० मेहाजल, आंबा, चौपा, केसव, कृष्णा, जसवंत, देवराज । तपागच्छे श्री गच्छाधिराज श्री ६ हीरविजयसरि आचार्य श्री श्री ५ विजयसेनसारिणा श्री आदिनाथ श्री चतुम खं प्रतिष्ठितं ।। श्री ।। सूत्रधार नरसिंघ श्री राइण वु० हाँसा रोपी वु० मना पुत्र वु० हंसा पुत्र शिवराज कमठाकारापितं ॥शुभं भवतु।।' जै० गु० क०भा०२ पृ० ३७४ 'महापुरुष मेहाजल नाम, तीरथ थाप्यु अविचल काम, संवत् ने हुई सोलिवली, शेत्रुजा यात्रा करी मनिरुली।' (शीलविजयकृत तीर्थमाला)
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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