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________________ २१०] :: प्राग्वाट-इतिहास: [तृतीय , १२ ३६-५६-इसी कुलिका में ऊपर की प्रथम प्रासनपट्टी पर उत्तराभिमुख प्रतिमाओं में से सं० १, २, ३, ४, ६, ७, ८, ६, १०, ११, १३, १४, १६, १७, १८, २०, २१, २२, २३, २४, २५ वी प्रतिमायें संवत् १७२१ फा० शु० ३ रविवार सं० कर्मराज ने विजयराजसूरि के कर-कमलों से प्रतिष्ठित करवाई। ६०-६२ १७२१ ज्ये० शु० ३ रवि. विजयराजसरि. गुणराज. महावीरबिंब. प्रतिमा सं० १६ द्वितीय आसनपट्टी पर विराजित प्रतिमाओं में से सं० ४, ७, ८ भी सं० सीपा के ही वंशजों द्वारा सं० १७२१ फा० शु० ३ रविवार को ही प्रतिष्ठित की हुई हैं। ६३-६४ १७२१ ज्ये० शु० ३ रवि. विजयराजसरि. कर्मराज. सुमतिनाथ. -- प्रतिमा सं० ५, ६ ६५ गुणराज. जिनबिंब. प्र० सं०६ ६६ जसरूपदेवी. अजितनाथ. राजभाण. सुविधिनाथ. धनराज. जिनबिंब. श्री शंखेश्वरपार्श्वनाथ-जिनालय में ६६ १७२१ ज्ये० शु० ३ रवि. विजयराजसरि. थिरपाल. सम्भवनाथ. खेलामण्डप में उत्तराभिमुख - श्री दशा ओसवालों के आदीश्वर-जिनालय में ७० १७२१ ज्ये० शु० ३ रवि. विजयराजसूरि. यादव. नमिनाथ खेलामण्डप में दक्षिणाभिमुख ७१ १६४४ फा० शु० १३ सुरताण. आदिनाथ. " पूर्वाभिमुख ७२ १७२१ ज्ये० शु० ३ रवि. " नमिनाथ. दे. कु. उत्तराभिमुख कर्मराज. सम्भवनाथ. हरचन्द्र. आदिनाथ. खेलामण्डप " कर्मराज. कुंथुनाथ. दे० कु० दक्षिणाभिमुख नाथाभार्या कमला. नमिनाथ. पश्चिमाभिमुख दे. कु. के खेलामंडप में उपरोक्त सूची से ज्ञात होता है कि सं० सीपा के वंशजों ने वि० सं० १७२१ ज्ये० सु० ३ रविवार को अंजनश्लाका-प्राण-प्रतिष्ठोत्सव अति धूम-धाम से श्रीमद् विजयराजसूरि की तत्त्वावधानता में किया और बहु द्रव्य व्यय करके अनेक बिंबों की प्रतिष्ठायें करवाई। सं० सदा तो वशन्तपुर में ही रहता था। सं० सदा के पाँचवें पुत्र सं० सीपा के पुत्रों तक यह परिवार वशन्तपुर में ही रहा । सत्रहवीं शताब्दी के अन्त में अथवा अट्ठारहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में यह परिवार सिरोही सं० सीपा के परिवार के में ही आकर रहने लग गया । सं० सीपा के वि० सं० १६३४ के लेखों से प्रतीत होता प्रसिद्ध वंशजो का परिचय है कि मन्दिर की मूलनायक देवकुलिका का प्रथम खण्ड उक्त संवत् में पूर्ण हो गया थाऔर मेहाजल का यशस्वी और सं० सीपा ने उसकी प्रतिष्ठा उसी संवत् में श्रीमद् विजयहीरसरिजी के कर-कमलों से जीवन करवाई थी। तत्पश्चात् उसके ज्येष्ठ पुत्र आसपाल ने फिर वि० सं० १६४४ फा० कृ० मंदिर का प्रतिष्ठा-लेख, जो गढ़मंडप के पश्चिम द्वार के बाहर उसके दायी ओर की दीवार में श्रालय के उपर खुदा है निम्न है। ७३ ७६
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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