SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 252
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खण्ड ] :: नाडोलनिवासी श्रे० शुभंकर के यशस्वी पुत्र पूतिंग और शालिग :: [ १०१ नाडोल निवासी सुप्रसिद्ध प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० शुभंकर के यशस्वी पुत्र पूतिग और शालिग विक्रम की तेरहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में नाडूलाई अथवा नाडोल में विक्रम की तेरहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में सुश्रावक शुभंकर अति प्रसिद्ध जैन व्यक्ति हो गया है। उसके पुत्र पूतिंग और शालिग अति ही धार्मिक, साधुवती और दृढ़ जैनधर्मपालक एवं हिंसा के परमोपासक हो गये हैं। ये दोनों भ्राता अपने दृढ़ अहिंसावत के पालन के लिए गुर्जर, सौराष्ट्र, राजस्थान में दूर २ प्रसिद्ध हो गये थे । नाडोल के राजा की राज्यसभा में भी इनका पूरा २ सम्मान था तथा नाडोल का राजा धर्मसंबंधी इनके प्रत्येक प्रस्ताव की सम्मान प्रदान करता था । अन्य राजाओं की राजसभा में तथा ग्रामपतियों की सभाओं में भी इनका बड़ा भारी सम्मान था । रत्नपुर नामक ग्राम जोधपुर-राज्य के अन्तर्गत है और दक्षिण में आया हुआ है। वहाँ के ग्रामस्वामी पूनपाक्षदेव की महारानी श्री गिरिजादेवी से, जिसने संसार की असारता को भलीविध समझ लिया था प्राणियों रत्नपुर के शिवालय में को अभयदान दिलाने के लिये इन दोनों भ्राताओं ने उनकी कृपा प्राप्त करके अभयदानपत्र अभयदान - लेख प्राप्त किया, जिसको श्री पूनपाक्षदेव ने स्वहस्ताक्षर करके प्रमाणित किया और परीक्षक लक्ष्मीर के पुत्र ठ० जसपाल ने प्रसिद्ध किया और फिर वह रनपुर के शिवालय में आरोपित किया गया, जो आज उन दयावतार दोनों भ्राताओं की अहिंसाभावना का ज्वलंत परिचर्य दे रहा है । इस अभयदानपत्र का भावार्थ 'इस प्रकार है: 'महाराजाधिराज, परमभट्टारक, परमेश्वर, पार्वतीपति लब्धप्रौढप्रताप श्री कुमारपालदेव के राज्यकाल में महाराज भूपाल श्री रामपालदेव के शासन - समय में रत्नपुर नामक संस्थान के स्वामी पूनपाक्षदेव की महाराणी श्री गिरिजादेवी ने संसार की असारता को विचार कर प्राणियों को अभयदान देना महादान है ऐसा समझकर, नगरनिवासी समस्त ब्राह्मण, आचार्य (पुजारीगण ), महाजन, संबोली आदि सर्व प्रजाजनों को सम्मिलित करके उनके समक्ष इस प्रकार अभयदान-पत्र लिखकर प्रसिद्ध किया कि अमावस्या के पर्वदिन पर स्नान करके देवता और पितृजनों को तर्पण देकर तथा नगरदेवता की पूजा करके इहलोक और परलोक में पुण्यफल प्राप्त करने और कीर्ति की वृद्धि करने की इच्छा से प्राणियों को अभयदान देने के निमित्त यह अभयदानपत्र प्रसिद्ध किया है कि प्रत्येक माह की एकादशी, चतुर्दशी और श्रमावस्या - कृष्ण और शुक्ल दोनों पक्षों की इन तिथियों को कोई भी किसी भी प्रकार की जीवहिंसा हमारे राज्य की भूमि में नहीं करें तथा हमारी संतति में उत्पन्न प्रत्येक व्यक्ति, हमारा प्रधान, सेनापति, पुरोहित और सर्व जागीरदार इस आज्ञा का पालन करें और करावें । जो कोई इस आज्ञा का उल्लंघन करे तो उसको दंड देवे । अमावस्या के दिन ग्राम के कुम्भकार भी कुम्भ आदि को पकाने के लिये आरम्भ नहीं करें। इन तिथियों में जो कोई व्यक्ति आज्ञा का उल्लंघन करके जीवहिंसा करेगा उस पर चार (४) द्राम का दंड होगा । नाडोलनगर के निवासी प्राग्वाटज्ञातीय श्रे० शुभंकर के पुत्र पूर्तिग और शालिंग ने जीवदयातत्पर रह कर प्राणियों के हितार्थ विनती करके यह शासन प्रकट करवाया है ।'
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy