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________________ :: प्राग्वाट - इतिहास :: I वि० सं० २००१ माघ कृष्णा ४ को श्री ' वर्द्धमाम जैन बोर्डिंग', सुमेरपुर के विशाल छात्रालय के सभाभवन में श्री 'पौरवाड़ - संघसभा' का द्वितीय अधिवेशन हुआ। श्री ताराचन्द्रजी ने 'प्राग्वाट - इतिहास' लिखाने का प्रस्ताव सभा के समक्ष रक्खा । सभा ने प्रस्ताव स्वीकृत कर लिया और तत्काल पाँच सदस्यों की 'श्री प्राग्वाट - इतिहास - प्रकाशक-समिति' नाम से एक समिति सर्वसम्मति से विनिर्मित करके इतिहास-लेखन का कार्य उसकी Faraar में अर्पित कर दिया। श्री ताराचन्द्रजी ने इस कार्य की सूचना गुरुदेव को पत्र द्वारा विदित की। इतिहास किससे लिखवाया जाय — इस प्रश्न ने पूरा एक वर्ष ले लिया । बीच-बीच में गुरुदेव मुझको भी इतिहास - लेखन के कार्य को करने के लिये उत्साहित करते रहे थे । परन्तु मैं इस भगीरथकार्य को उठाने का साहस कम ही कर रहा था । वि० सं० २००२ में आपश्री का चातुर्मास बागरा ही था । चातुर्मास के प्रारम्भिक दिवसों में ही श्री ताराचन्द्रजी गुरुदेव के दर्शनार्थ एवं इतिहास लिखाने के प्रश्न की समस्या को हल करने के सम्बन्ध में परामर्श करने के लिये बागरा आये थे । गुरुदेव, ताराचन्द्रजी और मेरे बीच इस प्रश्न को लेकर दो-तीन बार घण्टों तक चर्चा हुई | निदान गुरुदेव ने अपने शुभाशीर्वाद के साथ इतिहास-लेखन का भार मेरी निर्बल लेखनी की पतली और तीखी नोंक पर डाल ही दिया । तदनुसार उसी वर्ष आश्विन शु० १२ शनिवार ई० सन् १६४५ जुलाई २१ को आधे दिन की सेवा पर रु० ५०) मासिक वेतन से मैंने इतिहास का लेखन प्रारम्भ कर दिया । पुस्तकों के संग्रह करने में, विषयों की निर्धारणा में श्रापश्री का प्रमुख हाथ रहा है । आज तक निरन्तर पत्र-व्यवहार द्वारा इतिहास सम्बन्धी नई २ बातों की खोज करके, कठिन प्रश्नों के सुलझाने में सहाय देकर मेरे मार्ग को आपश्री ने जितना सुगम, सरल और सुन्दर बनाया है, वह थोड़े शब्दों में वर्णित नहीं किया जा सकता है । इतिहास का जब से लेखन मैंने प्रारम्भ किया था, उसी दिन से ऐतिहासिक पुस्तकों का अवशिष्ट दिनावकाश पढ़ना आपश्री का उद्देश बन गया था । आपश्री जिस पुस्तक पढ़ते थे, उसमें इतिहास सम्बन्धी सामग्री पर चिह्न कर देते और फिर उस पुस्तक को मेरे पास में भेज देते थे। सहयोग से मेरा बहुत समय बचा और मेरा इतिहास-लेखन का कठिन कार्य बहुत ही सरलतर हुआ - यह स्वर्णचरों में स्वीकार करने की चीज है । आपश्री के अनेक पत्र इसके प्रमाण में मेरे पास में विद्यमान हैं, जो मेरे संग्रह में मेरे साहित्यिक जीवन की गति - विधि का इतिहास समझाने में भविष्य में बड़े महत्व के सिद्ध होंगे । साथ में पत्र भी होता था। आपके इस थोड़े में आपके सदुपदेश एवं शुभाशीर्वाद का बल श्री ताराचन्द्रजी को इतिहास लिखाने के कार्य के हित दृढ़प्रतिज्ञ बना सका और मुझको कितना सफल बना सका यह पाठकगण इतिहास को पढ़कर अनुमान लगा सकेंगे । = ] ऐसे ऊच्च साहित्यसेवी चारित्रधारी मुनि महाराजाओं का आशीर्वाद विशिष्ट तेजस्वी और श्रमर कीर्त्तिदायी होता है । आशा है - यह इतिहास जिस पर आपश्री की पूर्ण कृपा रही है अवश्य सम्माननीय, पठनीय और कीर्त्तिशाली होगा । ता० १-६-१६५२. भीलवाड़ा (राजस्थान) लेखक दौलतसिंह लोढ़ा 'अरविन्द' बी० ए०
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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