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________________ ४० ] :: प्राग्वाट - इतिहास :: स्वीकृत कर लिया गया और पं० श्री लालचन्द्रजी, बड़ौदा को प्रस्तुत भाग का अवलोकन करने के लिये प्रथम निमंत्रित करना निrय किया गया और फिर आवश्यकता प्रतीत हो तो मुनि श्री जिनविजयजी से भी इसका अव लोकन कराना निश्चित किया गया। तत्पश्चात् बैठक तुरंत ही विसर्जित हो गई । मैं ता० २ अक्टोवर को सुमेरपुर से बागरा के लिये खाना हुआ । बागरा में श्रीमद् यतीन्द्रसूरिजी महाराज विराज रहे थे । उनसे सब बीती सुनाई। वहां से लौट कर पुनः सुमेरपुर होता हुआ स्टेशन राणी आया और राणी से ता० ६ अक्टोबर को फालना होकर श्री राणकपुरतीर्थ श्रा पहुँचा । ' राणकपुरतीर्थ' के वर्णन में जो कुछ उल्लेख करने से रह गया था, उसकी वहां एक दिन ठहर कर पूर्ति की । तत्पश्चात् पुनः सादड़ी होकर स्टे० फालना आया और ता० ११ अक्टोबर को स्टेशन फालना से ऊंझा का टिकिट लेकर ट्रेन में बैठा। ऊंझा में स्व० मुनि श्री जयंतविजयजी महाराज साहब के सुयोग्य एवं साहित्यप्रेमी शिष्यप्रवर मुनि श्री विशालविजयजी विराज रहे थे | उनसे 'आबू' भाग १ में छपे हुये ब्लॉकों की मांगणी करनी थी । सुनि श्री ने ब्लॉक दिलवा देने की फरमाई । ता० १२ अक्टोवर को ऊंझा से ईडर के लिये खाना हुआ और वीशनगर हो कर सायंकाल के लगभग साढ़े पांच बजे मोटर से ईडर पहुंचा। यहां पहुंच कर पर्वत पर बने हुये जैन-मंदिरों के दर्शन किये और वहां के अनुभवी सज्जनों से मिल कर पोसीनातीर्थ के विषय में अभिलषित परिचय प्राप्त किया । ता० १३ अक्टोबर को पोसीना पहुंचा और तीर्थपति के दर्शन करके प्रति ही आनंदित हुआ । पोसीना जाने का विशेष हेतु यह था कि श्रीमद् बुद्धिसागरजी महाराज साहिब द्वारा संग्रहीत जैन-धातु- प्रतिमा - लेख संग्रह भा० प्रथम में लेखांक १४६८ में वि० सं० १२०० का एक लेख श्रसवालज्ञातीय वृद्धशाखासंबंधी प्रकाशित हुआ है । यह लेख महामात्य वस्तुपाल और दंडनायक तेजपाल के पूर्व का है। यह दंतकथा कि दशा- बीशा के भेदों की उत्पत्ति उक्त मंत्री आताओं के द्वारा दिये गये एक प्रतिभोज में उपद्रव खड़े हो जाने पर हुई मिथ्या हो जाती है और यह प्रत्यक्ष प्रमाणित हो जाता है कि ये भेद मंत्री भ्राताओं के जन्म के पूर्व विद्यमान थे । परन्तु दुःख है कि उस प्रतिमा के, जिस के ऊपर यह लेख था दर्शन नहीं हो सके । संभव है वह प्रतिमा किसी अन्य स्थान पर भेज दी गई हो । विचार यह था कि अगर उक्त प्रतिमा वहां मिल जाती तो उस पर के लेख का चित्र प्रस्तुत इतिहास में दिया जाता और वह अधिक विश्वास की वस्तु होती और दशा बीशा के भेद की उत्पत्ति के विषय में प्रचलित श्रुति एवं दंतकथा में आपो-आप आमूल परिवर्त्तन हो जाता और तत्संबंधी इतिहास में एक नया परिच्छेद खुल कर एक अज्ञात भावना का परिचय देता । पोसीना से सीधा अहमदाबाद स्टेशन हो कर ता० १४ को राणी पहुँचा और ता० १५ को सकुशल भीलवाड़ा पहुँच गया । दुःख यह रहा की यह यात्रा सर्वथा निष्फल ही रही । . वि. सं. २०१० श्रावण शु. १४. ई. सन् १६५३ जुलाई २४ सोमवार | रक्षा-बंधन, श्री गुरुकुल प्रिंटिंग प्रेस, ब्यावर । 5 लेखक दौलतसिंह लोढ़ा 'अरविंद' बी. ए.
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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