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________________ प्रस्तावमा :: जिम्मे का गृहस्थभार भी आपने वहन किया और मुझको अपने कार्य में प्रगति करने के लिये मुक्त-बंधन रक्खा यह मेरे लिये कम सौभाग्य की बात नहीं है। ऐसी अर्धाङ्गिनी को पाकर मैं अपना गृहस्थ-जीवन सफल समझता हूँ और आपका प्रेमपूर्वक आभार मानता हूँ। अंत में जिन २ विद्वान् लेखकों की पुस्तकों का उपयोग करके मैं यह इतिहाक-भाग लिख सका हूँ, उन सब का अत्यन्त ऋणी हूँ और उस ऋण को चुकता करने के लिये यह इतिहास-ग्रंथ सादर प्रस्तुत करता हूं और स्वीकार करता हूं कि इसमें जो कुछ है, वह सब उन्हीं का है। फिर भी ऊपर नाम रख कर जो मैंने विवशतया धृष्टता की है, उसके लिये क्षमा चाहता हूं और आभार प्रदर्शित करता हूँ। वि० सं० २००६ आश्विन शुक्ला नवमी । लेखक-दौलतसिंह लोढा 'अरविंद' बी. ए. ई० सन् १६५२ सितम्बर २७ शनिश्चर. ) अमरनिवास, भीलवाड़ा (मेवाड़-राजस्थान) प्रस्तुत इतिहास के अवलोकनार्थ सुमेरपुर में श्री प्राग्वाटइतिहास-प्रकाशक समिति की बैठक और उसमें मेरी उपस्थिति ___ तथा श्री पोसीना-(साबला-पोशीना, ईडर-स्टेट) तीर्थ की यात्रा. प्रस्तुत इतिहास का लेखन सभूमिका जब समाप्त हो गया तो प्राग्वाटइतिहास-प्रकाशक समिति के मंत्री श्री ताराचन्द्रजी ने समिति की ओर से समाज के अनुभवी और प्रतिष्ठितजनों की प्रस्तुत भाग का अवलोकन करने के लिये 'श्री वर्धमान जैन बोर्डिंग हाउस, सुमेरपुर में विशेष बैठक वि० सं० २००६ आश्विन शुक्ला १३ (त्रयोदशी) तदनुसार ता० ३० सितम्बर १६५२ को बुलाई। लेखक भी प्रस्तुत भाग की पाण्डुलिपि लेकर उक्त बैठक में निमंत्रित किया गया था । दिन के दो प्रहर पश्चात् शुभपल में इतिहास का वाचन इस विशेष बैठक में उपस्थित हुये बन्धुओं के समक्ष प्रारम्भ किया गया। सर्व प्रथम आचार्य श्री यतीन्द्रसरिजी का संक्षिप्त परिचय और तत्पश्चात् मंत्री श्री ताराचन्द्रजी का परिचय पढ़ा गया। इनके पढ़ लेने के पश्चात् इतिहास का वाचन प्रारम्भ हुआ। प्रथम खण्ड में जहां 'प्राग्वाट-प्रदेश' के विषय में उल्लेख है, उसमें 'शक' ज्ञाति का यथाप्रसंग कुछ लेख आया है। 'शकज्ञाति' के नाम स्मरण पर ही बैठक में विवाद प्रारम्भ हो गया। विचार का आधार था की 'शकज्ञाति' एक शद्र ज्ञाति है और उत्पत्ति के प्रसंग में इस ज्ञाति के उल्लेख से यह सिद्ध होता है कि प्राग्वाटज्ञाति की उत्पत्ति में शुद्रज्ञातियों का भी उपयोग हुआ है। उक्त विचार प्रकरण की किसी भी पंक्ति से यद्यपि नहीं निकल रहे थे, परन्तु विवाद जो उठ खड़ा हुआ, उसका सच्चा हेतु तो विवाद को प्रारम्भ करने वाले सज्जन ही सत्य २ कह सकते हैं । हेतु के विषय में मैं अपना अनुमान भी देना उचित नहीं समझता। विवाद इतना बढ़ गया कि 'प्राग्वाट-प्रदेश' का प्रकरण भी पूरा सुना नहीं गया और 'शकज्ञाति' के अवतरण के प्रसंग पर तो विचार ही नहीं किया गया। पात बैठती नहीं देख कर निदान मैंने यह सुझाव रक्खा कि मुनि श्री जिनविजयजी, पं० श्री लालचन्द्रजी, बड़ौदा और पंडित श्री अमरचन्द्रजी नाहटा भारत के प्रसिद्ध विद्वानों एवं पुरातत्वज्ञों में अग्रणी माने जाते हैं और ये तीनों इतिहासविषय के धुरंधर पण्डित हैं। इनमें से समिति एक, दो या तीनों से इतिहास का अवलोकन करालें और उनके अभिप्रायों पर विचार करके फिर जो कुछ निर्णय करना हो वह करें। यह प्रस्ताव
SR No.007259
Book TitlePragvat Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherPragvat Itihas Prakashak Samiti
Publication Year1953
Total Pages722
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size29 MB
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