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________________ ६० तत्त्वज्ञान तरंगिणी द्वितीय अध्याय पूजन अगुरुलघुत्व स्वगुण बतलाता द्रव्य स्वंतत्र अखंड महान। कर्ता कर्म बुद्धि क्षय होती हो जाता है निज का ज्ञान || आप्तों में तीर्थकर, गायों में कामधेनु, मनुष्यों में चक्रवर्ती और देवों में इन्द्र, महान और . उत्तम हैं। उसी प्रकार ध्यानों में शुद्ध चिद्रूप का ध्यान ही सर्वोत्तम है । ९. ॐ ह्रीं चैतन्यचिंतामणिस्वरूपाय नमः । ज्ञानामृतस्वरूपोऽहम् । श्रेष्ठ वस्तुओं की तुलना ज्यों रत्नों में चिन्तामणि रत्न । वृक्षों में है कल्वृक्ष श्रृंगों में मेरु धातु में स्वर्ण ॥ पेय पदार्थो में अमृत है नदियों में गंगा है ज्येष्ठ । बेलों में है चित्रा बेल शेष बेल सबकी सब नेष्ठ || ज्ञानों में कैवल्य चरित में समता आप्तों में तीर्थेश । गायों में है कामधेनु मनुजों में चक्रवर्ती राजेश ॥ देवों में है इन्द्र श्रेष्ठ ध्यानों में आत्म ध्यान बलवान । एक शुद्ध चिद्रूप ध्यान ही इन सबमें है महा महान ॥९॥ ॐ ह्रीं द्वितीय अध्याय समन्वित श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी जिनागमाय अर्घ्य नि. । (१०) निधानानां प्राप्ति न च सुरकुरुहां कमधेनो:सुधाया- | सुचितारत्नानामसुरसुरनराकाशगेशेंदिराणाम् । खभोगानां भोगावनि भवनभुवां चाहमिंद्रादिलक्ष्म्याः न सन्तोषं कुर्यादिह जगति यथा शुद्धचिद्रूपलब्धिः ॥१०॥ अर्थ- यद्यपि अनेक प्रकार के निधान (खजाने), कल्पवृक्ष कामधेनु अमृत चिंता मणिरत्न सुर, असुर, नर और विद्याधरों के स्वामियों की लक्ष्मी, भोगभूमियों में प्राप्त इन्द्रियों के भोग और अहमिन्द्र आदि की लक्ष्मी की प्राप्ति भी संसार में संतोष सुख प्रदान करनेवाली हैं। परन्तु जिस प्रकार का संतोष शुद्धचिद्रूप की प्राप्ति से होता है, वैसा इन किसी से नहीं होता। १०. ॐ ह्रीं ज्ञानलक्ष्मीस्वरूपाय नमः । बोधामृतस्वरूपोऽहम् ।
SR No.007196
Book TitleTattvagyan Tarangini Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherTaradevi Pavaiya Granthmala
Publication Year1997
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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