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________________ 20 कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु-ये जो पंच परमेष्ठी हैं, वे आत्मा में ही चेतन रूप हैं, आत्मा की ही अवस्थायें हैं। इसलिए मेरे आत्मा ही का मुझे शरण है। . व्यवहार पूजा : भेद-प्रभेद . . द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव; पूज्य-पूजक, पूजा, नाम, स्थापना आदि तथा इन्द्र, चक्रवर्ती आदि द्वारा की जाने वाली पूजा की अपेक्षा व्यवहार पूजन के अनेक भेद-प्रभेद हैं। पूजा को द्रव्यपूजा एवं भावपूजा में विभाजित करते हुए आचार्य अमितगति उपासकाचार में लिखते हैं वचो विग्रहसंकोचो द्रव्यपूजा निगद्यते । तत्र मानससंकोचो भावपूजा पुरातनैः।।" "वचन और काय को अन्य व्यापारों से हटाकर स्तुत्य (उपास्य) के प्रति एकाग्र करने को द्रव्यपूजा कहते हैं और मन की नाना प्रकार से विकल्पजनित व्यग्रता को दूर करके उसे ध्यान तथा गुण चिन्तनादि द्वारा स्तुत्य में लीन करने को भावपूजा कहते हैं।" आचार्य अमितगति ने अमितगति श्रावकाचार में एवं आचार्य वसुनन्दि ने वसुनन्दि श्रावकाचार में द्रव्य पूजा के निम्नांकित तीन भेद किये हैं - 1. सचित्त पूजा 2. अचित्त पूजा और 3. मिश्र पूजा। सचित्त पूजा-प्रत्यक्ष उपस्थित समवशरण में विराजमान जिनेन्द्र भगवान और निर्ग्रन्थ गुरु का यथायोग्य पूजन करना सचित्त पूजा है। अचित्त पूजा-तीर्थंकर के शरीर (प्रतिमा) की और द्रव्यश्रुत की पूजन करना अचित्त द्रव्य पूजा है। मिश्र पूजा-उपर्युक्त दोनों प्रकार की पूजा मिश्र द्रव्य पूजा है। सचित्त फलादि से पूजन करने वालों को उपर्युक्त कथन पर विशेष ध्यान देना चाहिए। इसमें अत्यन्त स्पष्ट रूप से कहा गया है कि सचित्तता सामग्री की नहीं, आराध्य की होना चाहिए। सचित्त माने साक्षात् सशरीर जिनेन्द्र भगवान और अचित्त माने उनकी प्रतिमा। महापुराण में द्रव्यपूजा के पाँच प्रकार बताये हैं। - 1. सदार्चन (नित्यमह) 2. चतुर्भुज 3. कल्पद्रुम 4. आष्टाह्निक 5. ऐन्द्रध्वज।
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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