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________________ कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना 197 उपलब्ध है। द्यानतराय ने चौपाई छन्द का प्रयोग अपने साहित्य में पर्याप्त रूप से किया है। द्यानतराय ने विद्यमान बीस तीर्थंकर पूजन की जयमाला चौपाई छन्द में ही लिखी है। यथा - सीमन्धर सीमन्धर स्वामी, जुगमन्धर जुगमन्धर नामी। बाहु बाहु जिन जग जन तारे, करम सुबाहु बाहुबल दारे। जात सुजातं केवलज्ञानं, स्वयंप्रभु प्रभु स्वयं प्रधानं। .. ऋषभानन ऋषिभानन दोशं, अनन्त वीरज वीरज कोसं ।। इसी प्रकार दशलक्षण पूजन की जयमाला भी चौपाई छन्द में लिखी गयी है; जो कि जैन समाज में अत्यधिक प्रसिद्ध व प्रचलित है। यथा - उत्तम छिमा जहाँ मन होई, अन्तर बाहर शत्रु न कोई। . उत्तम मार्दव विनय प्रकासे, नाना भेदज्ञान सब भासे।। ... उत्तम आर्जव कपट मिटावे, दुर्गति त्याग सुगति उपजावे।। उत्तम सत्य वचन मुख बोले, सो प्राणी संसार न डोले ।। द्यानतराय ने सोलह कारण पूजन में चौपाई आँचलीबद्ध का प्रयोग किया है एवं जयमाला में चौपाई छन्द का प्रयोग किया है। ... (3) सोरठा- दोहा की भाँति सोरठा भी मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। रचना की दृष्टि से सोरठा, दोहा छन्द का उलटा होता है। इसके प्रथम व तृतीय चरण में ग्यारह-ग्यारह तथा द्वितीय व चतुर्थ चरण में तेरह-तेरह मात्रायें होती हैं। 'प्राकृत पेंगलम्' में सोरठा को अपभ्रंश सोरठा कहा गया है। हिन्दी साहित्य में सोरठा छन्द का व्यवहार प्रबन्ध एवं मुक्तक दोनों काव्य रूपों में उपलब्ध होता है। धानतराय ने अपनी पूजनों में सोरठा छन्द का प्रयोग किया है। (4) छप्पय- छप्पय संयुक्त मात्रिक विषम छन्द है। इसमें छह पद तथा एक सौ अड़तालीस मात्रायें होती हैं। प्रायः इसका प्रयोग वीर रस में होता है, परन्तु द्यानतराय ने इसका प्रयोग अन्य रसों में भी विषयानुसार किया है। इसका प्रयोग चर्चाशतक में, पूजनों में एवं धर्म विलास में देखने को मिलता है। (5) अडिल्ल- अडिल्ल मात्रिक सम छन्द है। अडिल्ल छन्द का प्रयोग सामान्य इतिवृत्तात्मक प्रकरणों में हुआ है। द्यानतराय ने मुक्तक प्रकीर्ण साहित्य चर्चाशतक एवं धर्मविलास में इसका प्रयोग किया है। कवि
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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