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________________ कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना 9 (14) हिंसा एवं वैर के विरोधी- कविवर द्यानतराय हिंसा एवं वैर के विरोधी थे; इसीलिए उन्होंने अपनी रचनाओं में छह काय के जीवों पर दया रखने की बात की है, वे छहकाय के जीवों की हिंसा का निषेध करते हुए लिखते हैं कि - वे ते चौ इंद्री त्रिविध, परज अपरज अलब्ध। विकलत्रैकै भेद नव, हिंसा करै निषिद्ध ।। 8|| इसी प्रकार ज्ञानी जीवों द्वारा पाली जाने वाली अहिंसा की चर्चा करते हुए लिखते हैं कि - ..... ज्ञानी जीव दया नित पालैं ।। ज्ञानी।। . . . आरम्भसँ परघात होत है, क्रोध घात निज टालें।। ज्ञानी।। हिंसा त्यागी दयालु कहावै, जलै कषाय बदन में। बाहिर त्यागी अन्तर दागी, पहुँचे नरक सदन में।। ज्ञानी।। इसी तरह वे वैर भाव को संसार दुःख का कारण तथा मैत्री भाव को सुख का कारण मानते हुए वैर छोड़कर मित्रता करने का उपदेश देते हैं - पीडै दुष्ट अनेक, बाँध मार बहुविधि करें।। . धरिये छिमा विवेक, कोप न कीजै पीतमा।। उत्तम छिमा गहो रे भाई, इह-भव जस पर भव सुखदाई। गाली सुनि मन खेद न आनो, गुन को औगुन कहै अयानो।। कहि है अयानो वस्तु छीनै, बाँध मार बहुविधि करै। घर नै निकारै तन विदारै, वैर जो न तहाँ धरै।। ते करम पूरब किये खोटे, सहै क्यों नहिं जीयरा। अति क्रोध-अगनि बुझाय प्रानी, साम्य-जल ले सीयरा ।।* द्यानतराय की दृष्टि में मनुष्य जीवन की सार्थकता धर्म पालन करने में है। बिना धार्मिक कृत्यों के मानव जीवन व्यर्थ गँवाना ठीक नहीं है। मानव शरीर के प्रत्येक अंग की सार्थकता धर्म सेवन एवं उसके निमित्तभूत जिनकथा के श्रवण, पठन, कथन आदि में ही है। इस प्रकार द्यानतराय का ब्राह्य व्यक्तित्व अर्थात् शारीरिक संगठन अज्ञात है, परन्तु उनकी रचनाओं द्वारा उनके आन्तरिक व्यक्तित्व अर्थात् मानसिक स्थिति आदि का ज्ञान भलीभाँति हो जाता है। उनके आन्तरिक व्यक्तित्व को समझने के लिए उनकी कृतियों में आई हुई उपर्युक्त वे सभी पंक्तियाँ सहायक हैं जिनमें उनके मनोभावों एवं विचारों की झलक मिलती है।
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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