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________________ 5 कविवर द्यानतराय के साहित्य में प्रतिबिम्बित अध्यात्म चेतना चौथे तेरै अन्तिम थानक पंच भाव सिद्धालय जान। सम्यक ग्यान दरस बल जीवतनिहचैं सौं तु आप पिछान।। 7011 इसी प्रकार तीन लोक का वर्णन जितनी रोचकता से पद्यमय लिखा है, वैसा अन्यत्र दुर्लभ है। - तीन लोक का स्वरूप पूरब पच्छिम सात नर्क तलें राजू सात, आ» घटा मध्यलोक राजु एक रहा है। ऊँचैं बढ़ि भयौ ब्रह्म लोक राजु पाँच भया है, आ» घटा अन्त राजु एक सरदहा है। दच्छिन उत्तर आदि मध्य अन्त राजु सात, ऊँचा चौदह राजु षट् द्रव्य भरा लहा है। असंख्यात परदेश भूर लोक कियो भेष। करै छरै हरै कौन स्वयं सिद्ध कहा है।। 8 ||" गणित की विषयवस्तु को जिस बारीकी से द्यानतराय ने अपने काव्य में प्रस्तुत किया है, उससे लगता है कि वे एक कुशल गणितज्ञ थे। (6) गायन-प्रिय-द्यानतराय कवि थे, अतः उनके काव्य में गेयता विद्यमान है। उनका समस्त काव्य छन्दबद्ध है, अतः उसे कण्ठस्थ करने में आसानी रहती है। द्यानतराय गायक भी थे। कवियों, सन्तों तथा भक्तों के गीत समाज एवं राजदरबार में गाये व सुने जाते थे। द्यानतराय की रचनायें उनके समय में ही गीतरूप में प्रचलित हो गयी थीं। गीत गाने व सुनने से व्यक्ति में ज्ञान एवं गुणों का विकास होता है तथा उसमें कविता रचने की कुशलता आती है। द्यानतराय ने अपने बनाये कवित्तों को गाया एवं सबको सुनाया। कवित्त बनाये सबनि सुनाये, मन आए गाये गुण ग्यान। (7) निरभिमानी-द्यानतराय अत्यन्त निरभिमानी व्यक्ति थे, इसलिए वे उत्कृष्ट काव्य की रचना करने वाले कवि होकर भी अपने आपको अल्प बुद्धिवाला सामान्य मानव ही मानते हैं। वे लिखते हैं - ओंकार मँ झार पंच परम पद वसत हैं। तीन भुवन में सार, बंदौं मनवचकाय सौं।। अच्छर ज्ञान न मोहि, छन्द भेद समझू नहीं। बुधि थोड़ी किम होई, भाषा अच्छर बाबनी।। 21
SR No.007148
Book TitleAdhyatma Chetna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNitesh Shah
PublisherKundkund Kahan Tirth Suraksha Trust
Publication Year2012
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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