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________________ अपूर्व विशेषण दिया है। 27. 'स्वपद' का सूत्र में ग्रहण क्यों किया है ? परोक्षज्ञानवादी मीमांसकों, अस्वसंवेदनज्ञानवादी सांख्यों और ज्ञानान्तर प्रत्यक्षवादी योगों के मतों के निराकरणार्थ स्वपद का सूत्र में ग्रहण किया गया है। 28. प्रमाण किसे कहते हैं ? जिसके द्वारा प्रकर्ष से अर्थात् संशय, विपर्यय और अनध्यवसाय के व्यवच्छेद (निराकरण) से वस्तु तत्त्व जाना जाए वह प्रमाण कहलाता है। a 29. अन्यथानुपपत्ति किसे कहते हैं ? साध्य के बिना साधन के नहीं होने को अन्यथानुपपत्ति कहते हैं। .. 30. विचारवान कार्य करने वाले बुद्धिमान प्रमाण का अन्वेषण किसलिए करते हैं ? हित की प्राप्ति और अहित के परिहार के लिए करते हैं। .. अब आगे अपने कहे गये प्रमाण के लक्षण में जो ज्ञान यह विशेषण दिया है, उसका समर्थन करते हुए आचार्य भगवन् सूत्र कहते हैंहिताहितप्राप्तिपरिहारसमर्थं हि प्रमाणं ततो ज्ञानमेव तत्॥2॥ सूत्रान्वय : हित = सुख, अहित = दुःख, प्राप्ति = प्राप्त कराने वाला, परिहार = निराकरण करने में। समर्थं = समर्थ, हि = जिससे, प्रमाणं = प्रमाण, ततः = उससे, ज्ञानम् = ज्ञान, एव = हि, तत् = वह। सूत्रार्थ : सुख की प्राप्ति और दुःख का परिहार करने में समर्थ प्रमाण है वह प्रमाण ज्ञान ही हो सकता है। 'सन्निकर्ष' आदि नहीं। संस्कृतार्थ : इंद्रियार्थयोः सम्बन्धः सन्निकर्षः / स च सन्निकर्षोऽचेतनो विद्यते। अचेतनाच्च सुखावाप्तिः दुःखविनाशो वा न जायते, अतः सन्निकर्षः प्रमाणं नो भवेत् / परंतु ज्ञानात्सुखावाप्तिः दुःखविनाशो वा जायते, अतो ज्ञानमेव प्रमाणम् / यतः सुखावाप्तौ दुःखविनाशे वा यत् समर्थं तदेव प्रमाणं प्रोक्तम् / 21
SR No.007147
Book TitleParikshamukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandi Aacharya, Vivekanandsagar, Sandip
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Samsthan
Publication Year2011
Total Pages22
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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