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________________ नहीं होता है। जैसे-संशयादि और घटादि / विवाद को प्राप्त प्रमाण है, इसलिए स्वापूर्वार्थ व्यवसायात्मक ज्ञानप्रमाण है। विशेष्य : पक्ष (धर्मी) = प्रमाण पद, साध्य = स्वापूर्वार्थ व्यवसायात्मक ज्ञान, हेतु = प्रमाणत्व, दृष्टान्त = संशयादि, निगमन = प्रमाण सामान्य मानने में किसी को भी विवाद नहीं है। स्वापूर्वार्थव्यवसायात्मकज्ञान प्रमाण है, क्योंकि प्रमाणता उसमें पाई जाती है, जो स्वापूर्वार्थव्यवसायात्मक ज्ञान नहीं हैं वह प्रमाण भी नहीं हैं। जैसे - संशयादि ज्ञान स्वापूर्वार्थ व्यवसायात्मक नहीं है, अतः प्रमाण नहीं है। जैसे - घट-पटादि। क्योंकि प्रमाण स्वापूर्वार्थ व्यवसायात्मक होता है, अतः वह ज्ञान ही हो सकता है। यहाँ प्रमाणस्वरूप है। तु का कथन असिद्ध भी नहीं है। उपरोक्त सूत्र में प्रमाण विशेष्य है शेष विशेषण है जो अन्य मतों के प्रमाण स्वरूप का निराकरण करते हैं। 23. सूत्र में ज्ञान विशेषण क्यों दिया है ? नैयायिक मतावलम्बियों के द्वारा मान्य अज्ञानरूप सन्निकर्ष की प्रमाणता का निराकरण करने के लिए सूत्र में ज्ञान विशेषण दिया है जो सार्थक है। . 24. सूत्र में व्यवसायात्मक विशेषण क्यों दिया है ? बौद्धों के द्वारा मान्य निर्विकल्प प्रत्यक्ष की प्रमाणता का निराकरण करने के लिए अर्थात् जिस ज्ञान में विकल्प ही नहीं फिर भी वह संशय का निराकरण कैसे करेगा। इसलिए जैनाचार्य ने व्यवसायात्मक (निश्चायक) विशेषण दिया है। 25. सूत्र में 'अर्थ' विशेषण क्यों दिया है ? _ विज्ञानाद्वैतवादी, पुरुषाद्वैतवादी, शून्यैकांतवादियों के द्वारा मान्य प्रमाण के स्वरूप को निराकरण करने के लिए 'अर्थ' पद को ग्रहण किया है। 26. अर्थपद के साथ अपूर्व विशेषण क्यों दिया है ? ग्रहीतग्राही धारावाहिक ज्ञान की प्रमाणता के परिहार के लिए सूत्र में 20
SR No.007147
Book TitleParikshamukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandi Aacharya, Vivekanandsagar, Sandip
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Samsthan
Publication Year2011
Total Pages22
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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