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________________ मनीषियों की दृष्टि में : डॉ. भारिल्ल में प्रयोग करने पर उतर आये हों; 'मैं ही ठीक हूँ' के आग्रह से भरी उनकी लेखनी हो; दूसरा भी ठीक हो सकता है, दृष्टिकोण अलग-अलग हो सकते हैं - यह सोच जिनकी कुंठित हो चुकी हो; स्याद्वाद और अनेकान्त की चर्चा करते हों, किन्तु आग्रह और एकान्त में जीते हों और तिरस्कार भरे शब्दों का प्रयोग करते हों; ऐसे समय में एक ऐसा अनूठा व्यक्तित्व जो शालीनता, समन्वय, सज्जनता, सरलता बनाये रखकर, धर्मध्वजा को लेकर विश्व में धर्म की प्रभावना कर रहा हो; ऐसे व्यक्तित्व को मैं प्रणाम करता हूँ और वह व्यक्तित्व है डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल । मैं कई बातों में उन्हें आदर्श मानता हूँ। - रमेश कासलीवाल, इन्दौर गगनचुम्बी ऊँचाइयाँ मैं डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल साहब को कई दशकों से जानता हूँ और उनके साहित्य का मैंने अध्ययन भी किया है। उस अध्ययन की मौलिकता और गंभीरता को देखकर मैंने यह अनुभव किया है कि यदि वे मेडिकल डॉक्टरी के क्षेत्र में होते, इंजीनियरिंग के क्षेत्र में होते या राजनीति के क्षेत्र में होते, तो उसमें भी उन्होंने गगनचुम्बी ऊँचाइयों को छुआ होता। ___मुझे ऐसा लगता है कि उनकी टक्कर का कोई भी लेखक दिखाई नहीं देता। वैसे बहुत से लेखक हुए हैं, लेकिन इनकी लेखनी में जो प्रौढ़ता है, मौलिकता है; वह दूसरों में नहीं। - डॉ. राजाराम शास्त्री, मगध विश्वविद्यालय, बोधगया जैन वाङ्गमय के प्रकाण्ड विद्वान डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल आज जैन वाङ्गमय के प्रकाण्ड विद्वान हैं तथा सिर्फ राष्ट्रीय ही नहीं, अन्तर्राष्ट्रीय क्षितिज में उनका नाम है। ___ यदि हम सेवा गिनें तो निःसंकोच मैं कह सकता हूँ कि उन्होंने जैन धर्म का प्रचार सारे विश्व में करके हमारी सुसुप्त अवस्था को जाग्रत कर,
SR No.007144
Book TitleManishiyo Ki Drushti Me Dr Bharilla
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavsaheb Balasaheb Nardekar
PublisherP T S Prakashan Samstha
Publication Year2012
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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