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________________ 18 मनीषियों की दृष्टि में : डॉ. भारिल्ल ये जहाँ भी जाते हैं, अपनी ही बात कहते हैं। आप किसी भी मंच पर चले जायें, कहीं संकोच नहीं करते। ____ दादा (डॉ. भारिल्ल) की यही आदत है । उन्हें संसार में कोई आकर्षण नहीं है। न उन्हें कोई लाभ की आकांक्षा है और न हानि का भय। उन्हें तो चाहे निंदा करो, चाहे प्रशंसा करो, लक्ष्मी आवे, चाहे चली जावे, मरण आज हो जाये, चाहे कालांतर में हो, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता, उन्हें कोई चिंता नहीं है। अपने न्याय के पथ से आप विचलित होनेवाले नहीं हैं। ___आप कितना भी ठोक-बजा लो इनको, परन्तु आपका आत्मा का जो सिद्धांत है, जो कुन्दकुन्द का सिद्धान्त है, उस सिद्धान्त से डिगनेवाले नहीं हैं। वे जब भी कहेंगे, तब उसी बात को कहेंगे। ऐसी दृढ़ता कैसे आये? ऐसा सफल अगर किसी को बनना है, तो कैसे बनेगा? । ____ हमें कभी भी ऐसा दिखाई नहीं पड़ा कि प्रवचन करते समय इनके चेहरे पर जरा भी शिकन आई हो। मुस्कराते रहते हैं, हँसते हुए, हँसाते हुए आत्मा का बोध आप कराते हैं। अद्भुत हैं। . आप (डॉ. भारिल्ल) सरस्वतीपुत्र हैं, आपको मैं नमस्कार करता हूँ। हम यहाँ अपनी अंतरात्मा की आवाज से आये। हमारे अंतरात्मा ने कहा कि आप एक विभूति हैं, आपका हीरक जयन्ती महोत्सव हो रहा है, उसमें जरूर जाना चाहिए, उनसे कुछ सीखना चाहिए। - प्रो. डॉ. सुदर्शनलाल जैन, वाराणसी (उ.प्र.) अनूठे व्यक्तित्व के धनी आज जब देश के कुछ तथाकथित विद्वान सैद्धान्तिक मतभेदों के कारण अपनी शालीनता को तिलांजलि देकर, असंयत भाषा का प्रयोग कर, एक दूसरे को नीचा दिखाने का प्रयास कर रहे हों; एक एक शब्द पर अपने पक्ष के पोषण के लिये निम्न स्तर की भाषा अपने पत्र-पत्रिकाओं
SR No.007144
Book TitleManishiyo Ki Drushti Me Dr Bharilla
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavsaheb Balasaheb Nardekar
PublisherP T S Prakashan Samstha
Publication Year2012
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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