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________________ मुक्ति प्राप्त करते हैं । सम्यग्दृष्टि गृहस्थ भी अपने आत्मा में सिद्धत्व की स्थापना करके दो-तीन भव में मोक्षगामी हो जाते हैं। आचार्यदेव तो सभी आत्माओं को सिद्धपने ही देखते हैं क्योंकि स्वयं को सिद्धत्व की रुचि है और अल्पकाल में सिद्ध होना है। यहाँ यह बताया जा रहा है कि भगवान ने क्या करके मोक्ष प्राप्त किया? भगवान ने परजीवों का कुछ नहीं किया परन्तु सर्व प्रथम अपने आत्मा में भेदज्ञान प्रकट किया। यहाँ श्रीसमयसार में श्रीकुन्दकुन्दाचार्यदेव भेदज्ञान को ही मोक्ष का उपाय बता रहे हैं णादूण आसवाणं असुचित्तं च विवरीय भावं च । दुक्खस्स कारणं ति य तदो णियत्तिं कुणदि जीवो ॥ 72 ॥ अशुचिपना, विपरीतता ये आस्रवों का जानके । अरु दुःखकारण जानके, इनसे निवर्तन जीव करे ॥ 72 ॥ आत्मा, नित्य ज्ञानानन्दस्वभावी पवित्र वस्तु है । उसकी अवस्था में जो शुभाशुभराग होता है, वह अशुचिरूप है । जैसे, पानी में उत्पन्न होनेवाली काई, पानी का स्वभाव नहीं है; उसका मैल है, वैसा ही आत्मा की अवस्था में होनेवाले पुण्य-पापभाव आत्मा के स्वभाव नहीं हैं, बल्कि उसकी मलिनता है, अशुचिता है। आत्मा के ज्ञानस्वभाव का अनुभव करने पर वह पवित्र आत्मा अनुभव में आता है तथा पाप-पुण्य के भाव, आत्मा के मैलरूप से अनुभव में आते हैं। शरीर अशुचि है परन्तु वह तो आत्मा से अत्यन्त भिन्न है, जड़ है। आत्मा की अवस्था में होनेवाला पुण्य-पापरूप राग भी अपवित्र है, मैल है, अशुचि है और ज्ञानानन्द की मूर्ति भगवान आत्मा पवित्र है, निर्मल है, शुचि है। इस प्रकार आत्मा और विकार को भिन्नभिन्न जानकर, आत्मा विकार से पीछे हटकर स्वभाव की तरफ झुकता है । विकार से निवृत्त होने पर आत्मा को कर्मबन्धन नहीं होता। इस प्रकार आत्मा और विकार का भेदज्ञान ही मुक्ति का उपाय है। 10
SR No.007136
Book TitlePanch Kalyanak Kya Kyo Kaise
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRakesh Jain
PublisherTirthdham Mangalayatan
Publication Year
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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