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________________ १६२ साधना पथ __ मनुष्यभव में मोह का क्षय किया जा सकता है। मोह को क्षय करना हों तो कर सकते हैं, यह ज्ञानियों की आज्ञा है। जो आज्ञा मिली हो तो पालन करना चाहिए। धर्म की आराधना बिना रुचि पलटती नहीं। कैसे भी कर के मुझे ज्ञानी की आज्ञा मिले, ऐसी भावना रखो। ज्ञानी की आज्ञा से ही मोक्ष है, यों जीव को दृढ़ होना चाहिए। आज्ञा की महत्ता लगे तो स्वच्छंद आदि दोष जाएँ। आज्ञा ही धर्म है। श्री.रा.प.-५०६ (१२६) बो.भा.-२ : पृ.-१७२ प्रश्नः- निर्भय कौन कहलाएँ? पूज्यश्रीः- जिसने चार घाति कर्म का नाश किया हैं, वह निर्भय है। ग्यारहवें तक भय है। चौथे, पाँचवें, छठे सब गुणठाणा में सावधान रहना हैं। मोहनीय कर्म के क्षय बाद भय नहीं। पहले से ग्यारहवें तक भय है। मोह कितना बढ़ जाएगा, कुछ कहा नहीं जा सकता। प्रमाद में जीव पड़ा तो चौदह पूर्व पढ़ा हो पर समकित न हुआ, तो फिर अनन्त काल तक भटकना पड़ेगा। प्रश्नः- चौदह पूर्वधारी का भी पतन क्यों? पूज्यश्री :- मोह के कारण पतन है। अभ्यास अलग वस्तु है और मोह अलग है। सम्यकदर्शन न होने से पतन है। सम्यक्दर्शन हो तो सावधानी रहती है। इसके विना सब निष्फल है। सवका आधार रुचि है। अकेला ज्ञान कोई बचाता नहीं। साथ में मोह की भी मंदता चाहिए। संसार से भय होना चाहिए। संसार का मूल, मोह है। मोह है वहाँ संसार है। संसार दुःखरूप नहि लगता। भाव वदलना है। ज्ञानी के वचन अनुसार चलें तो भाव बदल। धर्म का मूल श्रद्धा है। ज्ञानीपुरुष ने कहा वही मोक्ष का मार्ग है। श्रद्धा कहाँ करनी वह समज़ नहीं है। अंधा और अनजान दोनों बराबर है। अज्ञान दशामें पता नहीं लगता। सदाचार और त्याग-वैराग्य का सेवन करना। पुण्य के योग से सद्गुरु मिलेगें, पुण्य चाहिए। सद्गुरु के योग से
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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