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________________ साधना पथ १६) खोज करेगा। अन्दर से संसार दुःखरूप लगें तब ज्ञानी का कहा मान्य होता है। संसार से रुचि बदलनी है। ___ अब तो मोक्ष के लिए ही जिना है। मोक्ष का मार्ग ही परम तत्त्व है। उसका मुझे सदा निश्चय रहो। निश्चय ही समकित है। यह यथार्थ स्वरूप मेरे हृदय में प्रकाश करें। यही परम धर्म है, यही मानना, यही करना। इसी की भावना करना है, इस भावनासे अपूर्व फल मिलेगा। भावना भव की नाशक है, ऐसी भावना करो कि जन्म मरण छूट जाएँ। माया आदि भाव छूट जाएँ, तो मोक्ष हो। भावना भी सच्ची रीति से होनी चाहिए। तभी काम होगा। जन्म-मरण बंधन लगें तो छूटना शुरु हो। इस जीव को बंधन नहीं लगता। अनन्त काल से जो भी करता आ रहा है, उसका फल क्लेश आया है। ऐसे रास्ते तूं न जा, यों ज्ञानी पुकार कर कहते हैं। विचार आएँ तो समझ पड़ें कि यह रास्ता दुःख का है। सब ज्ञानीपुरुषों ने इस संसार को असार कहा है। जिसे ज्ञानी पर श्रद्धा है, उसे संसार क्लेशरूप लगता है। प्रमाद, बड़ा शत्रु है। प्रमाद छोड़के जागृत हो। ज्ञान दशा आने के बाद भी जागृत रहना है। चार ज्ञान के धारक गौतम जैसे ज्ञानीपुरुष को भी भगवान महावीर बोध देते थे कि 'समयं गोयम मा पमाए।' हे गौतम! समय मात्र का भी प्रमाद न कर। जीव को अनादि से भटकानेवाली विपर्यासिता है। विपर्यास बुद्धि मिटें तो परिभ्रमण मिटें। सजगता की जरूरत है। मोह के कारण जीव अग्यारहवें से गिरता है। जीव को मोक्ष होने तक अनन्त भय हैं। संसार तो अनेक विघ्नों से भरा है। मरीचि, भगवान महावीर का जीव, एक विरोधी शब्द वोला, तो कितने भव करने पड़े ! अतः तीर्थंकर देव कहते हैं कि प्रारब्ध का जब उदय हो तब ज्यादा सावधान रहना, वर्ना न जाने कैसे कर्म बंध हो जाएँ? ज्ञानी कहते हैं कि यदि तुझे मार्ग समझ आ गया है तो अब प्रमाद न कर। मनुष्यभव दुर्लभ है, शायद मिलता है। तुझे ऐसे मनुष्यभव अनन्ती बार मिला तथापि कुछ भी सफलता न हुई। अतः ज्ञानी कहते हैं, हे जीव ! मोह में से जागृत हो, जागृत हो। मनुष्यभव की एक क्षण भी रत्न चिंतामणि सम है।
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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