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________________ साधना पथ १६३ शान्ति होती है। जब तक आत्मा जागृत ना हो तब तक सर्वत्र भय है। सद्गुरु को पहचानने में भूल आई तो सब में भूल आऐगी। धर्म सद्गुरु से शुरु होता है। इसलिए कहा है, 'दूसरा कुछ मत खोज। मात्र एक सत्पुरुष को खोजकर उसके चरण कमल में सर्वभाव अर्पण करके आज्ञा आराध।' (श्री.रा.प-७६) ज्यों ज्यों मुमुक्षुता आएगी, त्यों त्यों मार्ग समझ में आएगा। छूटने की भावना मंद पड़ने न दें। गुरु की पहचान करन में अन्तर वैराग्य की जरूरत है, वैराग्य होगा तो पहचान होगी। मुमुक्षुता बढ़नेसे पहेचान होती है, मुमुक्षु वह है जो मोह करनेसे डरता है। पुण्य और त्याग-वैराग्य की प्राप्ति हो तो सत्पुरुष की पहचान हो, जीव अनादि काल से मोह में पड़ा है। बहुत खाया, बहुत पिया, अब छूटना है। यह भाव आएँ तो छूटे। जब तक मोह है, तब तक सत्पुरुष की पहचान नहीं होती। जिसे आत्मज्ञान हो गया है, उसे भी सावधान रहने को ज्ञानीने कहा है। तो फिर जिसे मार्गानुसारीता भी नहीं, उसे तो कितनी जागृति की जरूरत हैं। विशेष भय रखने कि आवश्यकता है। वैराग्य न हो, उसे ज्ञानीपुरुष चाहे कितना भी, कुछ भी कहें, अच्छा नहीं लगता। उसे तो मोह की बातें ही अच्छी लगती हैं। 'समयं गोयम मा पमाए।' यह वाक्य जीवने अनेकों बार पढ़ा, अनेकों बार सुना पर यह मेरे लिए ही कहा है, ऐसा नहीं लगता। यह तो गौतमस्वामी को कहा है, अपने को नहीं। ज्यों ज्यों उपदेश की सफलता लगेगी, त्यों त्यों उपदेश परिणाम पाएगा। कृपालुदेव मुझे ही कहते हैं इस तरह सोच, समजकर विचार करना। ‘आत्मा नित्य है। ऐसा कह कर भी जीव भयभीत रहता है। इसका कारण उपदेश बोध हुआ नहीं। अथवा सुना तो ग्रहण नहीं किया जिससे सिद्धांत परिणाम न पाया। बोध दो प्रकार से हैं:- उपदेश बोध, सिद्धांत बोध। त्याग-वैराग्य की भूमिका आएँ तब सिद्धान्त बोध परिणमे। उपदेश बोध शुरुआत की भूमिका है। उपदेश बोध में त्याग-वैराग्य का उपदेश होता है। इससे पुरुषार्थ वर्धमान होता है। 'आत्मसिन्द्रि' सिद्धान्त बोध है। ‘आत्मसिद्धि' रोज बोलने पर भी योग्यता न हो तो नहीं परिणमे। षट् दर्शन के साररूप ज्ञानी पुरुष के वचन हैं। जो
SR No.007129
Book TitleSadhna Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrakash D Shah, Harshpriyashreeji
PublisherShrimad Rajchandra Nijabhyas Mandap
Publication Year2005
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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