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________________ ३२ भगवतीसूत्रे वर्ष सहखाणि 'उक्कोसेण वि बावीसं वाससहस्साई' उत्कर्षेणाऽपि द्वाविंशतिवर्ष सहस्राणि भवन्तीति सप्तमगमः ७ । 'सो चेव जहन्नकालटिइएसु उववन्नो' स एवं उत्कृष्टकालस्थितिका-पृथिवीकायिकजीव एव यदि जघन्यकालस्थितिकेषु पृथिवीकायिकेषु समुत्पन्नो भवेत् तदा-'जहन्नेणं अंतोमुत्त० उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्त०' जघन्येन अन्तर्मुहूर्तस्थितिकेषु पृथिवीकायिकेषु तथा उत्कर्षेणापि अन्तमुहूर्त्तस्थितिकेषु पृथिवीकायिकेषु समुत्पद्यते, एवं जहा सत्तमगमो जाव भवादेसो' एवं यथा सप्तमगमो यावद्भवादेश इति अत्र सप्तमगमसदृशः सर्वोऽपि वक्तव्यः, कियत्पर्यन्तं सप्तमगमो वक्तव्य स्तत्राह-'जाव' इत्यादि, 'जाव भवादेसो' इति भवादेशपर्यन्तस्य सप्तमगमस्यात्र सर्वमपि वस्तु विचारणीयमिति । भवादेशपर्यन्तः सप्तमगम एवात्र द्रष्टव्यः, 'कालादेसेणं जहन्नेणं बावीतं वाससहस्साई उकोसेण वि बावीसं वाससहस्माई' यहां उसकी स्थिति जघन्य से २२ हजार वर्ष की होती है और उत्कृष्ट से भी २२ हजार वर्ष की होती है। इस प्रकार से यह सातवां गम है। ___ आठवां गम इस प्रकार से है-'सो चेव जहन्नकालाटिइएसु उव. वनो' वही उत्कृष्ट कालकी स्थिति वाला पृथिवीकायिक जीव यदि जघन्यकाल की स्थिति वाले पृथिवीकायिकों में उत्पन्न होता है तो वह 'जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं० उक्कोसेण वि अंतोमुहूत्त.' जघन्य से अन्तमुहर्स की स्थितिवाले पृथिवीकायिकों में उत्पन्न होता है, और उस्कृष्ट से भी अन्तर्मुहूर्त की स्थितिवालों में उत्पन्न होता है । 'एवं जहा सत्त. मगेमो जाव भवादेसो' इस प्रकार से यहां पर सप्तम गम की वक्तव्यता यावद्भवादेश तक कहनी चाहिये, तथा-'कोलादेसेणं जहन्नेणं રા' અહિયાં તેની સ્થિતિ જઘન્યથી ૨૨ બાવીસ હજાર વર્ષ થાય છે અને ઉછુટથી પણ બાવીસ હજારની થાય છે. આ રીતે આ સાતમો ગમ કહ્યો છે. वे भाभी गम माम मावे छ-'सो चेव जहन्नकालट्रिइ. एस उववन्नो' से वि४ि ७१न्य जनी स्थिति ast. विडोमा पन थाय छ, त त 'जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं ।' उक्कासेण वि अंतोमु ' જઘન્યથી અંતર્મુહૂર્તની સ્થિતિવાળા પૃવિકાયિકોમાં ઉત્પન્ન થાય . अन टथी ५४४ मतभुत नी स्थितिमा उत्पन्न थाय छे. 'एव जहा सत्तनगमो जाव भवादेसो' मा शत मडिया सातभा समनु थन यावत माहेश सुधी युनेस. तथा 'कालादेसेण जहन्नेणं बावीस वास. શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
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