SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.१२ २०१ पृथ्वीकायिकानामुत्पातनिरूपणम् ३३ अंतोमुहुत्तममहियाई' कालादेशेन-कालापेक्षया जघन्येन द्वाविंशतिषसहस्राणि अन्तर्मुहूर्ताभ्यधिकानि 'उक्कोसेणं अट्ठासीई वासहस्साई चाहिं अंतोमुहुत्तेहि अब्भहियाई' उत्कर्षेणाऽष्टाशीतिवर्षसहस्राणि चभिरतमुहूर्तरभ्यधिकानि 'एवइयं एतावन्तं कालं सेवेत एतावन्तं कालं गमनागमने कुर्यात् इत्यष्टमो गमः८ । अथ नवमगमं निरूपयितुमाह-'सो चेव' इत्यादि, 'सो चेव उक्कोपकालद्विारम उववन्नो' स एवोत्कृष्ट कालस्थितिकेषु उत्पन्ना, स एव-पृथिवीकायिकजीव एव उत्कृष्टकालस्थिति केषु-पृथिवीकायिकेषु यदि समुत्पन्नो भवेत् तदा-'जहन्ने बावीसवास सहस्सटिइएसु' जघन्येन द्वाविंशतिवर्षसहस्र स्थिति केषु पृथिवी कायि. केषु समुत्पद्यते 'उकोसेण वि बाबीसवाससहस्सटिइएसु' उत्कर्षेणाऽपि द्वाविंश: तिपर्षसहस्रस्थितिकेषु पृथिवीकायिकेषु उत्पाते इत्यादि । 'एस चेव सत्तमगमपाधीसं वाससहस्साई अंतोमुत्तभ० महियाई' काल की अपेक्षा वह जघन्य से अन्तर्मुहूर्त अधिक २२ हजार वर्ष तक और उत्कृष्ट से चार अन्तर्मुहर्त अधिक ८८ हजार वर्ष तक उस गति का सेवन करता है, और इतने ही काल तक वह उस गतिमें गमनागमन किया करता है। ऐसा यह आठवां गम है। नौवां गम इस प्रकार से है-'सो चेव उकोसटिइएसु उववनो' वही उत्कृष्ट काल की स्थितिवाला पृथिवीकायिक जीव यदि उत्कृष्ट काल की स्थितिवाले पृथिवीकायिकों में उत्पन्न होता है तो वह 'जह. न्नेणं बावीसवाससहस्सटिइएसु उक्कोसेण वि बावीसवाससहस्सहिइएस्सु' जघन्य से भी २२ हजार वर्षकी स्थिति वाले पृथिवीकायिकों में उत्पन्न होता है और उत्कृष्ट से भी २२ हजार वर्षकी स्थितिवाले पृथिवी सहस्साई अतो मुहुत्तमम्भहियाई' सनी अपेक्षा ते पायथा अतभुत અધિક ૨૨ બાવીસ હજાર વર્ષ સુધી અને ઉત્કૃષ્ટથી પણ ચાર અંતમુહર્ત અધિક ૨૨ બાવીસ હજાર વર્ષ સુધી તે ગતિનું સેવન કરે છે. અને એટલા જ કાળ સુધી તે એ ગતિમાં ગમનાગમન કરે છે. ॥श मा मामी गम ७. ८ वे नवमा गमन ४५१ ४२वामां आवे छे.-सो चेव उक्कासकालद्विरएसु उववन्नो' मे पृथ्वी यि ८१ Gre ४जनी स्थिति Yी . मिi Sपन्न थाय छ, ता ते 'जहन्नेणं बावीसवाससहस्सटिइएसु उक्कोसेण वि बावीस वाससहस्सटिइएसु' धन्यथी २२ मावीस &२ १ स्थिति પૃથ્વીકાયિકમાં ઉત્પન્ન થાય છે અને ઉત્કૃષ્ટથી પણ ૨૨ બાવીસ હજાર વર્ષની શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy