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________________ - १३० भगवतीस्त्रे अथ देवेभ्यः पृथिवीकायमुत्पादयितुमाह-'जइ देवेहितो' इत्यादि । 'जइ देवेहितो उववनंति' यदि देवेभ्य आगत्य पृथिवीकायिकेषु जीवा उत्पचन्ते तदा-'किं भवणवासिदेवेहितो उवाज्नंति' किं भवनवासिदेवेभ्य उत्पद्यन्ते अथवा 'वाणमंतरदेवेहितो उववज्जति' वानव्यन्तरदेवेभ्य आगत्य पृथिवीकायिकेषु उत्पधन्ते 'जोइसियदेवेहितो उपवज्जति' ज्योतिष्कवैमानिकान्यतमेम्य उत्पद्यन्ते अथवा-'वेमाणियदेवेहितो उपवति ' वैमानिकदेवेभ्य उत्पद्यन्ते, हे भदन्त ! पदि देवेभ्य आगत्य समुत्पद्यते तदा किं भवनवासिवानव्यन्तरज्योतिष्कवैमानिकान्यतमेभ्य उत्पद्यन्ते इति प्रश्नः। भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'भवणबासिदेवेहितो वि उववज्जति' भवनवासिदेवे__ अब देवों से आकर पृथिवीकायम उत्पन्न होने के विषय में कहते हैं । अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'जइ देवेहितो उववज्जति' यदि पृथिवीकायिकों में देवों में से आकरके जीव उत्पन्न होते हैं तो 'किं भवणवासिदेवेहिती उववज्जति' क्या वे भवनवासी देवों में से आकरके उत्पन्न होते है ? या 'वाणमंतरदेवेहितो उबवज्जति' वानव्यन्तर देवों में से आकरके उत्पन्न होते हैं ? या-जोइसियदेवेहितो उववज्जति' ज्योतिषिक देवों में से आकर उत्पन्न होते हैं ? या 'वेमाणियदेवेहिंतो उववज्जति' बैशानिक देवों में से आकरके उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते है-'गोयमा' हे गौतम ! भवणधासि देवेहितो वि उववज्जंति जाव वेमाणियदेवेहितो वि उववज्जति' 'पृथिवीकायिकों में जीव भवन वासी देवों से आकर के भी उत्पन्न होते हैं यावत् वैमानिक देवों से आकरके भी उत्पन्न होते हैं। यहां यावत् व गौतभाभी प्रभुने पूछे छे -'जइ देवेहितो उववज्जति' ने वोमांथा भावीन 4 पृथ्वी विमा उत्पन्न थाय छे तो 'किं भवणपासी देवेहितो उववज्जति' शु त मनपासी देवोमांथा भावान पन्न थाय छ ? है 'बाणमंतर देवेहि ते। उववज्जति' पान०यन्त२ हवामाथी भावाने उत्पन्न याय छ १३ 'जोइसियदेवेहि तो उववज्जति' न्यातिषि४ वोमाथा भावी 64-1 थाय छ ? 3 'वेमाणियदे वेहितो उववज्जति' वैमानि हेवा. માંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ ગૌતમસ્વામીને ४छे 3-गोयमा !' 8 गौतम ! 'भवणवासिदेवेहितो वि उववज्जति जाव वेमाणियदेवेहितो वि उववज्जति' ७१ पृथिवयमा मनासी देवोभाया આવીને પણ ઉત્પન્ન થાય છે, યાવત્ વૈિમાનિક દેમાંથી આવીને પણ ઉત્પન્ન શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
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