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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.१२ सू०५ मनुष्यजीवानामुत्पत्तिनिरूपणम् १३१ भ्योऽपि उत्पद्यन्ते 'जाव वैमाणिय देवेहिंतो वि उच्चज्जति' यावद्वैमानिकेभ्योऽपि उत्पद्यन्ते । इह यावत्पदेन 'वाण मंतर देवे हिंतो वि उववज्जंति, जोइसिय देवेर्हितो वि उववज्जंति इत्यनयोः संग्रहः, हे गौतम! भवनवासिदे वेभ्यो वानव्यंतरदेवेभ्यो ज्योति osदेवेभ्यो वैमानिकदेवेभ्यो उत्पद्यन्ते इति । 'जइ भवणवासिदेवेर्हितो उववज्जंति' यदि भवनवासिदेवेभ्य उत्पद्यन्ते तदा किं अनुरकुमारभवणवासिदेवेहिंतो उवनज्जति' किमसुरकुमार भवनवासिदेवेभ्य उत्पद्यन्ते 'जाव थणिय कुमार भवणवासि देवेहिंतो उववज्जति यावत् स्तनितकुमारभवनवाखिदेवेभ्य उत्पद्यन्ते ? भगवानाह - 'गोमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! 'असुरकुमार भवणवासि देवे हिंतो उववज्र्ज्जति' असुरकुमार भवनवासिदेवेभ्य आगत्य पृथिवीकायिके उत्पद्यन्ते' 'जाव थणियकुमार भवणवासिदेवेहिंतो उववज्जंति' यात्रत् स्तनितेति यावत्पदेन नागकुमारसुवर्ण कुमारविद्युत्कुमाराऽग्निकुमार द्वीपकुपारो -दधिकुमार - दिक्कुमार - वायुकुमार पद से ' वाणमंतर देवेदितो वि उवत्रजंति, जोइसियदेवेर्हितो वि उववज्जंति, इस पाठ को संग्रह हुआ है, तात्पर्य यही है कि चारों प्रकार के देवों में से आकर के जीव पृथिवीकापिकों में उत्पन्न होते हैं । अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं- 'जह भवणवासिदेवेहिंतो उबवज्जति' हे भदन्त ! यदि भवनवासि देवों से आकरके जीव पृथिवीकायिकों में उत्पन्न होते हैं तो 'किं असुरकुमार भवणवासि देवे हिंतो उववज्जति' क्या वे असुरकुमार नामके भवणवासि देवों में से आकर के उत्पन्न होते हैं अथवा 'जाव धणियकुमारभवणवासि देवेर्हितो उववज्जति' यावत् स्तनितकुमार भवनवासी देवों में से आकरके उत्पन्न होते हैं ? यहां यावत् शब्द से 'नागकुमार, थाय छे, मडियां यावत् पथी 'वाणमंतर देवे हिंतो वि उववज्जति जोइसिय देवहितो वि उववज्ज'ति' मा पाइने संग्रह थयो छे उहेवानुं तात्पर्य છે કે-ચાર પ્રકારના દેવેામાંથી આવીને જીવ પૃથ્વીકાયિકામાં ઉત્પન્ન થાય છે. हवे गौतमस्वामी प्रभुने गोवु छे छे है -- 'जइ भगणवासिदेवेहि तो ववज्ज'ति' हे भगवन् मे लवनवासी हेवेोर्भाथी भावीने व पृथ्वीमायि है।मां उत्पन्न थाय छे, तो शु' तेथ्यो 'कि' असुरकुमारभवणवा सिदेवेदिते। જીવવજ્ઞતિ' શુ તેઓ અસુરકુમાર નામના ભવનવાસીયામાંથી આવીને ઉત્પન્ન थाय छे ? 'जाव थणियकुमारभवणवासि देवेहिंतो उनवज्जं सि' यावत् स्तनि તકુમાર ભવનપતિ દેવામાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? અહિયાં યાવતુ શબ્દથી નાગકુમાર, સુવર્ણ કુમાર વિદ્યુત્સુમાર, અગ્નિકુમાર દ્વીપકુમાર, ઉદધિ. માર, દિશાકુમાર વાયુકુમાર, મા ભવનવાસી દેવાના ભેટા ગ્રહણ કરાયા છે. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫ --
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
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