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________________ % प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.१२ सू०५ मनुष्यजीवानामुत्पत्तिनिरूपणम् १२९ 'उको सेणं पच धणुसयाई उत्कर्षेण शरीरावगाहना पश्च धनु शतानि अन्य. त्सा संज्ञिपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकप्रकरणवदेव ज्ञातव्यम् केवलं शरीरावगाहना जघन्योत्कृष्टाभ्यां पञ्चधनुःशतप्रमाणाऽवगन्तव्येति। 'ठिई अणुबंधो जहन्नेणं पुचकोडी उक्कोसेण वि पुषकोडी' स्थितिरनुबन्धश्च जघन्येन पूर्वकोटि रुत्कृष्टतोऽपि पूर्वकोटिरेव, जघन्योत्कृष्टाभ्यां पूर्वकोटिप्रमाणा स्थितिरनुबन्धश्च भवतीति 'सेसं तहेव' शेषं तथैव अस्यैर्वाधिकगमेषु यत् यत् परिमाणसंहनन लेश्याज्ञानाज्ञानादिकं कथितं तथैव सर्वमिहापि अन्तिमेषु त्रिष्वपि गमेषु ज्ञातव्यम् केवलमवगाहना स्थित्यनुबन्धेषु वैलक्षण्यं भवति तत् मूत्रे एव कथितम् जघन्यतो द्वे भवग्रहणे उत्कृतोऽष्ट भवग्रहणानि इति । कालापेक्षयाऽनुगन्ध उपयुज्य ज्ञातव्यः। अवगाहना जघन्य से पांचसौ धनुष की है और 'उक्कोसेणं पंचधणु सयाई उत्कृष्ट से भी वह पांचप्लो धनुष की है, तथा-ठिई अणुपंधो जहन्नेणं पुव्धकोडी उक्कोसेण वि पुवकोडी' स्थिति एवं अनुबन्ध भी यहां जघन्य से और उत्कृष्ट से एक पूर्वकोटि रूप है, इसके अतिरिक्त 'सेसं तहेव' परिमाण संहनन लेश्या ज्ञानाज्ञान आदि का कथन जैसा इसीके औधिक तीन गमोंमें किया है वैसा ही इन अन्तिम तीनों गमोंमें भी समझ लेना चाहिये। केवल अवगाहना, स्थिति और अनुबन्ध इनमें अन्तर है, सो वह सूत्रकार ने स्वयं सूत्र में प्रकट ही कर दिया है, कायसंवेध यहां भवकी अपेक्षा दो भवों को ग्रहण करनेरूप जघन्य से है और आठ भवों को ग्रहण करने रूप उत्कृष्ट से है। तथा काल की अपेक्षा उपयोग लगाकर कह देना चाहिये। 'उकोसेणं पंच धणुसयाई उत्कृष्टया ५९ पायसेधनुषनी छ. तथा 'लिई अणुबंधो जहन्नेण पुवकोडी उकोसेण वि पुब्वकोडी' यति भने मनु પણ અહિયાં જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટથી એક પૂર્વકેટિ રૂપ છે, આ શિવાયનું 'सेसं तं चेव' परिभाय, सहनन, वेश्या, ज्ञान अज्ञान, विगेरे समधानु કથન અહિયાં સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ નિવાળા ના પ્રકરણમાં કહા પ્રમાણે જ છે. કેવળ અવગાહના, રિથતિ અને અનુબંધમાં જ જુદાપણું છે. તે સૂત્રકારે પોતે જ સૂત્રમાં જ પ્રગટ કરી દીધું છે. કાયસંવેધ અહિયાં ભવની અપેક્ષાથી બે ભેના ગ્રહણ રૂપ જઘન્યથી છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી આઠભોને ઝડણ કરવા રૂપ છે. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫
SR No.006329
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 15 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages969
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size57 MB
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