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________________ ७५ आचारांगसूत्रे एए आयाणा संति' अकरणीयमेतत् संखडिगमनम् न कर्तव्यमिति संख्याय विज्ञाय संखडिगमनं न कुर्यादिति, यस्माद् एतानि आदानानि कर्मबन्धनकारणानि सन्ति आयतनानि आधाकर्मादिदोषस्थानानि वा सन्ति अतएव 'संविज्जमाणा पच्चवाया भवंति' संचीयमानानि प्रति पलमुपचीयमानानि प्रत्यपायाः अन्यान्यपि कर्मोपादानवर्त्मनि भवन्ति तदुपसंहरन्नाह 'तम्हा से संजय नियंठे' तस्मात् कारणात् स संयतः निर्ग्रन्थः साधुः 'तहप्पगारे' तथाप्रकाराम् तथाविधाम् संखडिम् ' पुरे संखडि वा पच्छासंखडिं वा' पुरः संखडि वा विवाहादिमांगलिकमहोसनिमित्त प्रीतिभोजनरूपाम्, पश्चात् संखर्डिवा, मृतपित्रादिनिमित्तकाशुभकर्म सम्बन्धि मिष्टान्नादि भोजनरूपाम् वा 'संखर्डि' संखडिम् 'संखडिपडियाए' संखडिप्रतिज्ञया संखडिलाभाशयेन 'णो आमिसंघारिज्जा गमणाए' नो अभिसंधारयेत् गमनाय, संखडिगमनार्थं मनसि संकल्पं न कुर्यादित्यर्थः । सू० २९॥ संभावना रहती है इसलिये 'अकरणिज्जं चेयं संखाए एए आयाणासंति' साधु को नहीं करना चाहिये ऐसा 'संख्याय' जानकर सोधु संखडीगमन नहीं करे क्यों कि 'एते आयतणाणि ये सभी संखडी गमनादि कर्म बन्धन के कारण हैं अत एव 'संविजमाणा पच्चवाया भवति' प्रतिपल उपचीयमान- वढते हुए, प्रत्यवाय - दूसरे भी कर्म बन्धन होते हैं ' अब सबका उपसंहार करते हैं- 'तम्हा से संजए नियंटे' इसलिये वह संयमशील निर्ग्रन्थ-साधु 'तहप्पगारं' तथा प्रकाराम - उस तरह की 'संखडि' संखडी में चाहे वह संखडी 'पुरे संखडिं वा, पच्छा संखर्डिवा' पुरः संखडि वा पश्चात् संखडिं वा' पूर्व संखडी हो-विवा हादिनिमित्त की गई मांगलिक संखडी हो या पश्चात् संखडी हो मृत पितर के निमित्त की गई अमांगलिक संखडी हो संखडि संखडिम किसी भी संखडी में 'संखपिडियाए' संखडी प्रतिज्ञया-संखडी की प्रतिज्ञा से संखडी में भिक्षा लेने की इच्छा से 'णो अभिसंधारेज्जा गमणाए' नो अभिसंधारयेद् गमनाय संखडी में जाने के लिये हृदय में संकल्प या विचार भी नही करे ॥ ० २९ ॥ अर्थात् ते खीनी साथै भैथुन सेवन अरे तेवी संभावना रहे छे. तेथी 'अकरणिज्जं चेयं संखle re आयाणासंति' साधु से सौंगडी गमन न ले मे रीते लगीने सौंगडी ગમન કરવુ નહીં કારણ કે આ સઘળા એટલે કે સ`ખૌમાં કખ ધના કારણ છે. તેથી 'संखिज्जमाणा पच्चवाया भवंति' ६२४ पणे बघता सेवा जीन पाशु उधना थाय छे. हवे । उपसंहार र छे. - तम्हा से संजए नियंठे' तेथी ते संयमशील निर्थन्थ साधु साध्वीये 'तहप्पगारं' ये रीतनी 'संखर्डि' स'जडीभां आहे ते सौंगडी 'पुरे संखाड वा पच्छा संखडिं वा' विवाहाहि निमित्तश्री रवामां आवेल भांगलिक पूर्व સખડી હોય અથવા મૃત પિતૃઓના નિમિત્ત કરવામાં આવેલ અમગલિક એવી પશ્ચાત્ साडी हाय तेवा अध्याय 'संखडि' सौंगडीमां 'संखिडपडियाए' सौंगडीमां भाद्वार શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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