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________________ ७९६ आचारांगसूत्रे उपाश्रये अवग्रहं जानीयात् 'धूणंसि वा' स्थूगायां वा स्तम्भोपरि वा 'गिलुगंसि वा' गृहेलुके वा - गृहद्वारे वा 'उसुयालंसि वा' उदूखले वा, 'कामजलंसि वा' कामजले वा - स्नानपीठे वा (चौकी) 'तपगारे अंत लिक्खजाए' तथाप्रकारे तथाविधे स्थूणादौ अन्तरिक्षजाते - अन्तरिक्षप्रदेशे 'दुब्बद्धे दुणिक्खिते' दुर्बद्धे शिथिल बन्धयुक्ते, दुर्निक्षिप्ते - असम्यय् अवस्थापिते 'जाव नो उग्गहं' यावत् अनिष्कम्पे कम्पयुक्ते चलाचले उपाश्रये नो अवग्रहं 'उगिव्हिज्जा परिगिव्हिज्जा' अवगृह्णीयात् सकृद् वा गृह्णीयात् प्रगृह्णीयात् - असकृद् वा गृह्णीयात्, स्थूणा दौं निर्मिते उपाश्रये अन्तरिक्षस्थिते शिथिलबद्धे अवग्रहं न गृह्णीयादित्यर्थः, ' से भिक्खू वा भिक्खुणी वा स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा 'से जं पुण उवस्सए उग्गहं जाणिज्जा' स- साधुः यत् पुनः उपाश्रये अवग्रहं जानीयात् तर्हि 'कुडियंसि वा भित्तंसि वा' कुडये वा भित्तौ वा 'सि ंसि वा' शिलायां वा 'लेलुंसि वा' लेलुके वा- प्रस्तरखण्डे वा निर्मिते उपाश्रये 'तहपगारे अंतलि बजाए' तथाप्रकारे कुड्यादी अन्तरिक्षजाते 'नो उग्गहं उगिव्हिज्ज वा परि ऐसा वक्ष्यमाण रूप से उपाश्रय में अवग्रह को जान लेंकि इस उपाश्रय में रहने के लिये 'थूर्णसि वा गिलुगंसि वा स्तम्भ के उपर स्थान है या गृहके द्वार परस्थान है या 'उसुवालंमि वा' उदूखल पर स्थान है या 'कामजलंसि वा' स्नानपीठ (चौकी) पर स्थान है 'तहपगारे अंतलिक्खजाए' या इस तरह के ऊपर भाग में ही स्थान है तो इस प्रकार के अन्तरिक्ष जात में आकाश में स्थित स्तभादि के ऊपर 'दुबद्धे दुणित्रिखत्ते जाव' अच्छी तरह नहीं बन्धे हुए अर्थात् खूब मजबूती से नहीं बांधे हुए एवं सुव्यवस्थित रूप से नहीं व्यवस्थापित यावत् कम्पयुक्त अर्थात् हिलते हुए उपाश्रय में रहने के लिये 'नो उग्गहं उग्गिहिजा परिगहिज्जा' अनुमति विशेष रूप अवग्रह की एकबार या अनेकबार याचना नहीं करे क्योंकि स्तम्भ वगैरह के ऊपर निर्मित अन्तरिक्ष स्थित शिथिल बद्ध और अव्यवस्थित हिल चाल करते हुए उपाश्रय में रहने से गिरजाने की संभा उस्सए उग्गहं जाणिज्जा' ले या प्रमाणे वक्ष्यमाणु रीते उपाश्रयमां अवग्रहने लगी से 3- 'थूणंसि वा ' આ ઉપાશ્રયમાં રહેવા માટે સ્તંભની ઉપર રહેવાનુ સ્થાન છે. અથવા 'गिलुगंसि वा' धरना द्वार पर वास स्थान छे. अथवा 'उसुयालंसि वा' उहूमल - भारतीया उपर स्थान छे. अथवा 'कामजलंसि वा' स्नान पीडनी उपर निवास स्थान छे तो 'तह पगारे खिजाए' अथवा या प्रहारना उपरना लागमां स्थान है तो या प्रहारना अद्धर रडेसा स्थानमां मेटले } स्तं साहिनी उपर तथा 'दुब्बद्धे' सारी रीते नहीं' मांसां मथात् यूम भभूत रीते नहीं मांसा तथा 'दुणिक्खित्ते' सुव्यवस्थितयशाथी नहीं रामेला ‘ગાવ' યાવતુ કે પવાવાળા અર્થાત્ હલતાèાલતા સ્થાનમાં રહેવા માટે સંમતિરૂપ અવગ્રહની એકવાર કે અનેકવાર યાચના કરવી નહીં. કેમ કે ત ભ વિગેરેની ઉપર મનાવેલા અને અદ્ધર રહેલા અને શિથિલ અધવાળા તથા અવ્યવસ્થિત ઢાલતા એવા ઉપાશ્રયમાં રહેવાથી શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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