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________________ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. ३ सू० ३५ शय्येषणाध्ययननिरूपणम् ४२३ आहागडा वसही ॥१॥ वंसगकडणो कंपणछायण लेवण दुवारभूमी भो। परिकम्मयिप्पमुक्का एसा मूलुत्तरगुणेसु ॥२॥ दुमिम धूमिभ वासिअ उज्जोविअ बलिकडाअ वत्ता। सित्ता सम्मट्ठाविध विसोहि कोडीगया वसही ॥३॥ पृष्टिवंशो द्वे धारणे चरस्रो मूलवेल्यः । मूल. गुणैर्विशुद्धा एषा यथाकृता वसतिः॥ वंशककटनोत्कम्पनच्छादन लेपनं द्वारभूमेः । परिकर्मपशु नपुंसकों से विवर्जित भी नहीं हो इस प्रकार की उपाश्रय रूपवसति दोष युक्तही मानी जाती है अब मूलोतर गुणों को बतलाते हैं_ 'पट्टीवंसो दो धारणाओ' पृष्टि ऊपरका छादन और वंश चांस-दो धरण और 'चत्तारिमूलवेलीओ' और चार मूलवल्ली स्तम्भ होना चाहिये ऐसी वसति अर्थात्-उपाश्रय वगैरह 'मूलगुणेहिं विसुद्धा' मूलगुणों से विशुद्ध 'एसा अहा. गडा वसही' यथाकृत समझनी चाहिये और-'वंसगकडणो कंपणछायण' और वंश चांस कटन वर्षावरण तथा उत्कम्पन एवं छादन तथा 'लेवण दुवारभूमीओ' द्वारभूमिका लेपन 'परिकम्म विप्पमुक्का एसा मूलत्तरगुणेलु' परिकर्म विप्रमुक्त और मूलोत्तरगुणों से विशुद्ध तथा 'दूमिय धूमिय वासिअ उज्जोविय' धवलित धूपित और वासित्त और 'उज्जोविय' उद्योतित और-'बलिकडा आवत्ता अ'-कृत वलित एवं व्यक्त तथा 'सम्मट्टाविय विसोही कोडिगया वसही-सिक्त और समृष्ट वसति विशोधिकोटिगत समझनी चाहिये । इस तरह मूलोत्तर गुणों को समझ कर जो उपाश्रय रूप बसति मूलोत्तर गुणों से शुद्ध नहीं हो और स्त्री-पशु-नपुंसक से भी विवर्जित भी नहीं हो उस उपाश्रय में दोष युक्त होने અન્યથા વિપર્યય અર્થાત્ મુલત્તર ગુણોથી શુદ્ધ ન હોય અને સ્ત્રી પશુ અને નપુંસકાથી રહિત પણ ન હોય આવા પ્રકારની ઉપાશ્રયરૂપ વસતિ દેષ યુક્ત જ માનવામાં આવેલ છે. હવે મૂત્તર ગુણો સૂત્રકાર બતાવે છે. -'पट्टीवंसो' पृष्टि मेटले ५२नु छन भने ५० पेट पास दो धारणाओ' में घर भने 'चत्तारिमूलवेलीओ' यार सू पी अरसे स्त। ये मेवी सती अर्थात पाश्रय विगेरे 'मूलगुणेहिं विसुद्धा' भूबनगाथा विशुद्ध 'एसा अहा. गडावसही' यात समावी नये तथा 'वंसकडणो' पांसनु ४टन वर्षावर तथा 'कंप णछायण' 6.४५न २मने छाइन तथा 'लेवण दुवारभूमीओ' द्वा२ भूभिनु खेपन 'परिकम्म विप्पमुक्का' परिभ मुहूत 'एसा मूलत्तरगुणेसु' मने भूोत्तर गुथी विशुद्ध तथा 'दृमिअ धूमिअ वासिअ' सित, धूपित मन पासित तथा 'उज्जोत्रिय बलिकडा आवत्तीय' धोतित त पसित तथा व्यत तथा 'सित्तासम्मट्ठाविअ' ext भने ससूट वसति 'विसोहिकोटिगया वसही' विशति समवी. ॥ प्रभारी मुसोत्तर गुणाने सभने જે ઉપાશ્રય રૂપ વસતિ મલત્તર ગુણેથી શુદ્ધ ન હોય અને સ્ત્રી પશુ નપુંસકથી રહિત श्री आया सूत्र:४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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