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________________ ३६२ आचारांगसूत्रे वा' दामत्रययुक्तहारान् ‘पालंबाणि वा प्रालम्बानि वा कण्ठाभरणविशेषान् ‘हारे वा अद्धहारे वा' हारान् वा अर्द्धहारान् वा एगावली वा' एकावलि या 'कणगावली वा कनकावलि वा 'मुत्तावली वा' मुक्तावलि वा 'रयणावली वा' रत्नावलि वा 'तरुणीयं वा' तरुणी वा 'कुमारि या' कुमारी वा 'अलंकियविमूसियं' अलंकृतविभूषिताम-नानाऽऽभरणालंकृताम् 'पेहाए' प्रेक्ष्य दृष्ट्वा 'अह भिक्खू उच्चावयं मणं नियंछिज्जा' अथ स भिक्षुः साधुः उच्चावच मन: कुर्यात् तथाहि 'एरिसिया वा सा' ईदृशी वा सुन्दरी सा तरुणी कुमारी णो वा एरिसिया इयं वा णं बूया' नो वा ईदृशी सुन्दरी इयं वा तरुणी कुमारी वर्तते इत्येवं खलु ब्रूयात, तथाविधमलंकारजातं दृष्ट्वा युवर्ति कन्यकां वा तथाविधां दृष्ट्वा साधुः मनसि नाना प्रकारक तके. वितर्क कुर्वन् मम गृहेऽपि इंदृशमलंकारजातमासीत् तथा मम भार्याऽपि ईदृशी सुन्दरी आसीत् इत्येवं चिन्तयन् मनसि क्षोभोत्पत्या संयमात्मविराधनास्यात् तदाह-'इयं वा मणं कों या 'पालंबाणि वा' कण्ठाभरण विशेष रूप प्रालम्बों को या हारे वा' हार को 'अद्धहारे वा' या अर्धहार को या 'एगावलि वा' एकावली-एक लडी को या कनकावली को या 'कणगावली वा मुत्तावलि वा' मुक्तावली को अथवा 'रयणावली वा' रत्नावली को अथवा 'तरुणियं बा कुमारिं वा' तरुणी-युवती को या कुमारी को 'अलंकियविभूसियं पेहाए' अलंकृत विभूषित-अर्थात् अनेकों आभरणों से विभूषित देखकर 'अह भिक्खू उच्चायय मणं नियंछिजा' वह भिक्षुक साधु अपने मन को उच्चावच-ऊंचे नीचे अनेकों अच्छे बुरे संकल्प विकल्पास्मक विचारों से कलुषित करदेगा-जैसे कि 'सरिसिया वासा णो वास रिसिया' ऐसी सुन्दरी स्त्री वह मेरी भी धर्मपत्नीथी या मेरी धर्मपत्नी के समान सुन्दरी यह तरुणी युवती स्त्री या कुमारी नहीं है इस तरह मन में अनेकों तर्कवितर्क कुतर्कात्मक संकल्प विकल्प करने लगेगा 'इयंचा णं बूया' इसी तरह उन मणि कुण्डल वगैरह अलंकारों को भी देखकर अनेकों विचार करने लगेगा कि मेरे भी घर में इस तरह के अनेकों अलंकार भूषण जात थे 'पालंबाणि वा' म२ विशेष प्रासमान अथवा 'हारे वा' हारने, 'अद्धहारे वा' मधडारने अथवा 'एगावलि वा' पक्षी-में सवार हारने 'मुत्तावलि वा' भुत्ता भावान 'क गगावलि वा' उनी मा 'रयणावलि वा' २नाala मथवा 'तरुणिय वा' त३४ी स्त्रीने २५२॥ 'कुमारि वा' सुपारी ४-याने 'अलंकिय विभूसिय पेहाए' मत विभूषित अर्थात् मने माभूषणाथी सुशोभित नन 'अह भिक्खुस्स उच्चावय मणं नियंच्छिज्जा' त साधुनु भन मने ना ४६५ विपथी दुषित ४री दृश. म है 'सरिसिया वा सा' मानवी सु४२ भारी ५५५ श्री ती. मथ तो 'जो वा सरिसिया इयं वा गं बूया' भारी स्त्री समान ॥ स्त्री है भारी सु४२ नथी. 'इयं वा मणं साइज्जा' मा प्रमाणुना भनमा भने प्रारना इतत्मि: २४६५ qि४६५ थध આવશે. જેમ કે-મારા ઘરમાં પણ આ પ્રમાણેના અનેક પ્રકારના આભૂષણો હતા. આ રીતને श्री. साय॥॥ सूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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