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________________ मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंध २ उ. १ सू० २ शय्येषणाध्ययननिरूपणम् सेज्ज वा णिसोहियं वा चेतेज्जा ||सु० २॥ ___ छाया-स यदि पुनः उपाश्रयं जानीयात्, साण्डं सप्राणं सबीजं सहरितं सौषम् सोदकं यावत् स सन्तानकं, तथाप्रकारे उपाश्रये नो स्थानं वा शय्यां वा निपीधिको वा चेतयेत् ।।सू. २॥ टीका-'से जं पुण उवस्मयं जाणिज्जा' स-भावभिक्षुः यदि पुनरेवं वक्ष्यमाणरीत्या उपाश्रयं-वसति जानीयात् तथाहि 'सअंडं सपाणं सबीर' साण्डं सप्राणं प्राणियुक्तम्, सबीजम् 'सहरिए सोसे सोदए' सहरितम् सौषम्-ओषकणबिन्दुसहितम्, सोदकम्-शीतोदकसहितम् 'जाव' यावत्-सोतिङ्ग सपनक-सोदक-समृत्तिकमर्कट ससंतानकम् उपाश्रयं जानी. याहि 'तहप्पगारे' तथाप्रकारे तथाविधे साण्डे सपाणे बीजादिसहिते 'उवस्सए' उपाश्रये 'णो ठाणं वा सेज्जं वा णिसीहियं वा' नो स्थानम् वा कायोत्सर्गस्थानम् नो शय्यां वा टीकार्थ-अब उपाश्रय रूप क्षेत्र शरपा के विषय में ही जीव विशेष के रहने पर साधु को वहां पर नहीं रहना चाहिये यह बतलाते हैं-'से जं पुण एवं उवस्सयं जाणिज्जा' यह पूर्वोक्त संयमशील साधु और साध्वी यदि ऐसा वक्ष्यमाण रूप से उपाश्रय को जान लेकि-यह उपाश्रय 'सअंडं जीवों के अण्डा से युक्त है या छोटे छोटे या बडे बडे 'सपागं' प्राणियों से युक्त है अथवा 'सबीए' बीजों से युक्त है या 'सहरिए' हरे भरे तृण घास से युक्त है अथवा बर्फ 'सओसे' ओषकणों से युक्त है या 'सोदए जाव ससंतागयं' शीतोदक से युक्त है या यावत-उत्तिङ्ग-छोटी छोटी चीटी पिपीलि तथा पनक-फनगा एवं शीत जल से मिश्रित गिली मिट्टी से युक्त है, या मर्कट-मकोडा-लूता तन्तुजाल रूप सन्तान परम्परा से युक्त है ऐसा देखकर या जान बूझकर 'तहप्पगारे उवस्सए णो ठाणं वा, सेज्जं या, जिसीहियं या चेतेन्जा' इस प्रकार के अण्डे प्राणी जीव जात હવે ઉપાશ્રયરૂપ ક્ષેત્રશસ્યાના સંબંધમાં જ જીવ વિશેષ ત્યાં રહેતા હોય તો સાધુને ત્યાં રહેવાના નિષેધ કરતાં સૂત્રકાર કહે છે – ___ -'से जं पुण एवं उवस्सयं जाणिज्जा' से पूर्वरित सयमशील साधु भने साध्वी से पक्ष्यमा शत पायने मेवे। समरे हैं-'सअंडं सपाणं सबीए सहरिए' मा ઉપાશ્રય ના ઇંડાઓથી યુક્ત છે. અથવા નાના નાના પ્રાણિયથી યુક્ત છે. અથવા भीयामाथी युद्धत छ. अथवा दारी घासथी युक्त छे. 'सोसे सोदए' अथ। योस ५२३॥ ४थी युद्धत छ. 2424शीतथी युत छे. 'जाव ससंताणगं' यावत् नानी નાની કીડી મકંડી તથા પનક તથા ઠંડા પાણીથી મિશ્રિત લીલી માટિથી યુક્ત છે અથવા મકેડાના સમૂહરૂપ સન્તાન પરંપરાથી યુક્ત છે. આ પ્રમાણેના ઉપાશ્રયને જોઈને કે लीने 'तहप्पगारे उवस्सए' ते ४२॥ अर्थात छामे, प्राणियो विगैरे साथी युत उपाश्रयमा ‘णो ठाणं वा सेज्जं वा' योस ३५ थान माटे स्थान ४२ नली. तथा शच्या सथा। ५५ त्या ४२१॥ नहीं 'णिसीहिय वा चेनेज्जा' निधि-२यायाय श्री मायारासूत्र :४
SR No.006304
Book TitleAgam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1979
Total Pages1199
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_acharang
File Size83 MB
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